कन्हैया कुमार और मनोज तिवारी
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देश की सबसे घनी बसावट वाले उत्तर- पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में लोगों की जिंदगी ठहर सी गई है। कई इलाकों में अब तक विकास की रोशनी नहीं पहुंच सकी है, जबकि देश की संसद से यह महज दस किमी दूर है। आपको हैरानी हो सकती है, लेकिन कई काॅलोनियों में मकानों के दरवाजे बदबू फेंकते नालों के सामने खुलते हैं। करीब तीन लाख की आबादी वाले सोनिया विहार को ही लें, गर्मी में भी यहां की गलियां गंदे पानी में डूबी हैं।
ऐसी ही एक गली में सियासी मिजाज की बात करने पर धर्मेंद्र गुप्ता बताते हैं, मुकाबला तो कांटे का हो गया है, लेकिन इससे होना क्या? हम सबको अब तक बुनियादी अधिकार भी नहीं मिला है। गलियां आप देख ही रहे हैं। दूसरी बुनियादी सुविधाएं भी नदारद हैं। बीते तीन दशकों में, जब से यहां रहना हुआ है, सिवा सांसदों, विधायकों व पार्षदों के, बदलते कुछ खास नहीं देखा। सरकारें भी इस बीच कई आईं और चली भी गईं।
अपनी दैनिक परेशानियों के बावजूद लोगों की चुनावों पर गहरी नजर है। सियासी सरगर्मी पर अपनी बदहाली का जिक्र करने के बाद असलम प्रधान बड़े चाव से सियासत पर चर्चा करते हैं। उनका भी मानना है कि भाजपा के मनोज तिवारी के सामने कांग्रेस के कन्हैया कुमार के आने से लड़ाई कांटे की हो गई है। जबकि अभी तक चुनाव एकतरफा लग रहा था।
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