Notes in Hindi pdf – Indian Histroy - Ancient India - Shak Aur Kushan

Notes in Hindi pdf file for competitive exams– Indian Histroy - Ancient India - Shak aur kushan

Indian Histroy - Ancient India - शक और कुषाण MP3

Notes in Hindi pdf – Indian History – Ancient India – Shak Aur Kushan​

Notes in Hindi pdf – Indian History – Ancient India – Shak Aur Kushan​

History in Hindi

प्राचीन भारत (Ancient India)

                                                          

शक

Notes in Hindi pdf – Indian History – Ancient India – Shak Aur Kushan​

    • शक यूनानियों  के बाद शक आए | शकों की 5 शाखाएं थी और हर शाखा की राजधानी भारत और अफगानिस्तान में अलग-अलग भागों में थी | 
    • पहले शाखा ने अफगानिस्तान, दूसरी  शाखा ने पंजाब ( राजधानी-तक्षशिला) थी तीसरी शाखा ने मथुरा चौथी शाखा ने पश्चिमी भारत और पांचवी शाखा ने ऊपरी दक्कन पर प्रभुत्व स्थापित किया 

 

  • शक मूलतः  मध्य एशिया के निवासी थे और चारागाह की खोज में भारत आए | 
  • 58 ईसा पूर्व में उज्जैन के एक स्थानीय राजा ने शकों को पराजित करके बाहर खदेड़ दिया और विक्रमादित्य की उपाधि धारण की | 
  • शकों पर विजय के उपलक्ष में 58 ईसा पूर्व से एक नया संवत विक्रमी संवत के नाम से प्रारंभ हुआ उस उसी समय से विक्रमादित्य एक लोकप्रिय उपाधि बन गई जिसकी संख्या भारतीय इतिहास में 14 तक पहुंच गई गुप्त सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय सबसे अधिक विख्यात विक्रमादित्य था |
  • शकों की अन्य शाखाओं की तुलना में दक्षिण भारत में प्रमुख प्रभुत्व स्थापित करने वाली शाखा ने सबसे लंबे अरसे तक शासन किया | जिसका काल लगभग 4 शताब्दी तक था|
  •  गुजरात में चल रहे समुद्री व्यापार से यह शाखा काफी  लाभान्वित और भारी संख्या में चांदी के सिक्के जारी किए | 
  • शकों का सबसे प्रतापी शासक रुद्रदामन प्रथम था जिसका शासन (130 से 150 ई0) गुजरात के बड़े भाग पर था |इसने काठियावाड़ की अर्ध शुष्क सुदर्शन झील का जीर्णोद्धार किया |
  • रुद्रदामन संस्कृत का प्रेमी था उसने ही सबसे पहले विशुद्ध संस्कृत भाषा में लंबा अभिलेख( गिरनार अभिलेख) जारी किया, इसके पहले के सभी अभिलेख प्राकृत भाषा में रचित थे|
  • भारत में शक राजा अपने को क्षत्रप कहते थे |

कुषाण

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  • पल्लव के बाद कुशाल आए तो यूची और तोखरी भी कहलाते हैं |
  • यूची नामक एक कबीला 5 कुलों में बट गया था, उन्हीं में एक पुल के कुषाण थे | 
  • कुषाण वंश के संस्थापक कुजुल कडफिसेस था |  इस वंश का सबसे प्रतापी राजा कनिष्क था | इनकी राजधानी पुरुषपुर या पेशावर थी कुषाण की द्वितीय राजधानी मथुरा थी | 
  • कनिष्क ने 78 ई०  में एक संवत चलाया जो शक संवत कहलाता है जिसे भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है| 
  • बौद्ध धर्म की चौथी बौद्ध संगीति कनिष्क के शासन काल में कुंडलवन कश्मीर में प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान वसुमित्र के अध्यक्षता में हुई|  
  • कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय का अनुयाई था 
  • आरंभिक कुषाण शासकों ने भारी संख्या में स्वर्ण मुद्राएं जारी कि जिनकी शुद्धता गुप्त काल के स्वर्ण मुद्राओं से उत्कृष्ट है | 
  • कनिष्क का राजवैद्य आयुर्वेद का विद्वान विख्यात विद्वान चरक था जिसने चरक संहिता की रचना की | 
  • महविभाष के रचनाकार वसुमित्र है इसे ही बौद्ध धर्म का विश्वकोश कहा जाता है| 
  • कनिष्क के राजकवि अश्वघोष ने बौद्धों का रामायण ’बुद्धचरित’ की रचना की | 
  • वसुमित्र, पाश्र्व,  नागार्जुन, महाचेत और संघरक्ष भी कनिष्क के दरबार की विभूति थे| 
  • भारत का आइंस्टीन नागार्जुन को कहा जाता है इनकी पुस्तक माध्यमिक सूत्र में नागार्जुन ने सापेक्षता का सिद्धांत प्रस्तुत किया था | 
  • कनिष्क की मृत्यु 102 ईसवी में हो गई | कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव था 
  • गांधार शैली एवं मथुरा शैली का विकास कनिष्क के शासन काल में हुआ था| 
  • रेशम मार्ग पर नियंत्रण रखने वाले शासकों में सबसे प्रसिद्ध कुषाण थे | 

नोट:- रेशम बनाने की तकनीक का आविष्कार सबसे पहले चीन में हुआ था

 

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