Notes in Hindi for Competitive Exams–Indian Histroy-प्राचीन भारत–5-जैनधर्म-बौद्ध धर्म
Notes in Hindi – Indian Histroy - प्राचीन भारत - जैनधर्म - बौद्धधर्म
Notes in Hindi – Indian Histroy – प्राचीन भारत – जैनधर्म – बौद्धधर्म
History in Hindi
प्राचीन भारत (Ancient India)
जैनधर्म
Notes in Hindi – Indian Histroy – प्राचीन भारत – जैनधर्म – बौद्धधर्म
- जैनधर्म के संस्थापक एवं प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव थे ।
- जैनधर्म के 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे जो काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे । इन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में संन्यास – जीवन को स्वीकारा ।
- इनके द्वारा दी गयी शिक्षा थी ( i ) हिंसा न करना , ( ii ) सदा सत्य बोलना , ( ii ) चोरी न करना तथा ( iv ) सम्पत्ति न रखना ।
- महावीर स्वामी जैन धर्म के 24 वें एवं अंतिम तीर्थकर हुए ।
- महावीर का जन्म 540 ई ० पू ० में कुण्डग्राम ( वैशाली ) में हुआ था । इनके पिता सिद्धार्थ ‘ ज्ञातृक कुल ‘ के सरदार थे और माता त्रिशला लिच्छिवी राजा चेटक की बहन थी ।
- महावीर की पत्नी का नाम यशोदा एवं पुत्री का नाम अनोज्जा प्रियदर्शनी था ।
- महावीर के बचपन का नाम यर्द्धमान था । इन्होंने 30 वर्ष की उम्र में माता पिता की मृत्यु के पश्चात् अपने बड़े भाई नंदिवर्धन से अनुमति लेकर संन्यास – जीवन को स्वीकारा था ।
- 12 वर्षों की कठिन तपस्या के बाद महावीर को जृम्भिक के समीप ऋजुपालिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे तपस्या करते हुए सम्पूर्ण ज्ञान का बोध हुआ । इसी समय से महावीर जिन ( विजेता ) , अर्हत ( पूज्य ) और निम्रन्थ ( बंधनहीन ) कहलाए । –
- महावीर ने अपना उपदेश प्राकृत ( अर्धमागधी ) भाषा में दिया ।
- महावीर के प्रथम अनुयायी उनके दामाद ( प्रियदर्शनी के पति ) जामिल बने ।
- प्रथम जैन भिक्षुणी नरेश दधिवाहन की पुत्री चम्पा थी ।
- महावीर ने अपने शिष्यों को 11 गणधरों में विभाजित किया था ।
- आर्य सुधर्मा अकेला ऐसा गन्धर्व था जो महावीर की मृत्यु के बाद भी जीवित रहा और जो जैनधर्म का प्रथम येरा या मुख्य उपदेशक हुआ ।
- लगभग 300 ई ० पू ० में मगध में 12 वर्षों का भीषण अकाल पड़ा जिसके कारण भद्रबाहु अपने शिष्यों सहित कर्नाटक चले गए । किंतु कुछ अनुयायी स्थूलभद्र के साथ मगध में ही रुक गए । भद्रबाहु के वापस लौटने पर मगध के साधुओं से उनका गहरा मतभेद हो गया जिसके परिणामस्वरूप जैन मत श्वेताम्बर एवं दिगम्बर नामक दो सम्प्रदायों में बँट गया । स्थूलभद्र के शिष्य श्वेताम्बर ( श्वेत वस्त्र धारण करने वाले ) एवं भद्रबाहु के शिष्य दिगम्बर ( नग्न रहने वाले ) कहलाए ।
- जैनधर्म के त्रिरत्न हैं- ( i ) सम्यक् दर्शन , ( ii ) सम्यक् ज्ञान और ( iii ) सम्यक् आचरण । त्रिरत्न के अनुशीलन में निम्न पाँच महाव्रतों का पालन अनिवार्य है – अहिंसा , सत्यवचन , अस्तेय , अपरिग्रह एवं ब्रह्मचर्य ।
- जैनधर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है ।
- जैनधर्म में आत्मा की मान्यता है ।
- महावीर पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करते थे ।
- जैनधर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम स्यादवाद और अनेकांतवाद हैं ।
- जैनधर्म ने अपने आध्यात्मिक विचारों को सांख्य दर्शन से ग्रहण किया ।
- जैनधर्म मानने वाले कुछ राजा ये – उदायिन , वंदराजा , चन्द्रगुप्त मौर्य , कलिंग नरेश खारवेल , राष्ट्रकुट राजा अमोघवर्ष , चंदेल शासका
- मैसूर के गंग वंश के मंत्री , चामुण्ड के प्रोत्साहन से कर्नाटक के श्रवणबेलगोला में 10 वीं शताब्दी के मध्य भाग में विशाल बाहुबलि की मूर्ति ( गोमतेश्वर की मूर्ति ) का निर्माण किया गया ।
- खजुराहो में जैन मंदिरों का निर्माण चंदेल शासकों द्वारा किया गया ।
- मौर्योत्तर युग में मथुरा जैन धर्म का प्रसिद्ध केन्द्र था । मथुरा कला का संबंध जैनधर्म से है ।
- जैन तीर्थंकरों की जीवनी भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में है ।
- 72 वर्ष की आयु महावीर की मृत्यु ( निर्वाण ) 468 ई ० पू ० में बिहार राज्य के पावापुरी ( राजगीर ) में हो गई ।
- मल्लराजा सृस्तिपाल के राजप्रासाद में महावीर स्वामी को निर्वाण प्राप्त हुआ था ।
Notes in Hindi – Indian Histroy – प्राचीन भारत – जैनधर्म – बौद्धधर्म
प्रमुख जैन तीर्थंकर और उनके प्रतीक चिन्ह | |
जैन तीर्थंकर के नाम एवं क्रम | प्रतीक चिन्ह |
ऋषभदेव ( प्रथम ) | साँड |
अजितनाथ ( द्वितीय ) | घोड़ा |
संभव ( तृतीय ) | हाथी |
संपार्श्व ( सप्तम ) | स्वास्तिक |
शांति ( सोलहवाँ ) | हिरण |
नामि ( इक्सिवे ) | नीलकमल |
अरिष्टनेमि ( बाइसवें ) | शंख |
पार्श्व ( तेइसवें ) | सर्प |
महावीर ( चौबीसवें ) | त्रिरत्न |
नोट : दो जैन तीर्थंकरों ऋषभदेव एवं अरिष्टनेमि के नामों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है । अरिष्टनेमि को भगवान कृष्ण का निकट संबंधी माना जाता है । |
Notes in Hindi – Indian Histroy – प्राचीन भारत – जैनधर्म – बौद्धधर्म
जैन संगीतियाँ |
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संगीति | वर्ष | स्थल | अध्यक्ष |
प्रथम | 300 ई ० पू ० | पाटलिपुत्र | स्थूलभद्र |
द्वितीय | छठी शताब्दी | बल्लभी ( गुजरात ) | क्षमाश्रवण |
बौद्धधर्म
- बौद्धधर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध थे । इन्हें एशिया का ज्योति पुञ्ज ( LightofAsia ) कहा जाता है ।
- गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई ० पू ० में कपिलवस्तु के लुम्बनी नामक स्थान पर हुआ था ।
- इनके पिता शुद्धोधन शाक्य गण के मुखिया थे ।
- इनकी माता मायादेवी की मृत्यु इनके जन्म के सातवें दिन ही हो गई थी । इनका लालन पालन इनकी सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने किया था ।
- इनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था ।
- गौतम बुद्ध का विवाह 16 वर्ष की अवस्था में यशोधरा के साथ हुआ । इनके पुत्र का नाम राहुल था ।
सिद्धार्थ जब कपिलवस्तु की सैर पर निकले तो उन्होंने निम्न चार दृश्यों को क्रमशः देखा– ( i ) बूढ़ा व्यक्ति , ( ii ) एक बीमार व्यक्ति , ( iii ) शव एवं ( iv ) एक संन्यासी ।
सांसारिक समस्याओं से व्यथित होकर सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में गृह – त्याग किया , जिसे बौद्धधर्म में महाभिनिष्कमण कहा गया है ।
गृह – त्याग करने के वाद सिद्धार्थ ( बुद्ध ) ने वैशाली के आलारकालाम से सांख्य दर्शन की शिक्षा ग्रहण की । आलारकलाम सिद्धार्थ के प्रथम गुरु हुए ।
आलारकलाम के बाद सिद्धार्थ ने राजगीर के रुद्रकरामपुत्त शिक्षा ग्रहण की ।
उरुवेला में सिद्धार्थ को कौण्डिन्य , वप्पा, भादिया , महानामा एवं अस्सागी नामक पांच साधक मिलें ।
बिना अन्न – जल ग्रहण किए 6 वर्ष की कठिन तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख की पूर्णिमा की रात निरंजना ( फल्गु ) नदी के किनारे , पीपल वृक्ष के नीचे , सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ ।
ज्ञान – प्राप्ति के बाद सिद्धार्थ बुद्ध के नाम से जाने गए । वह स्थान बोधगया कहलाया ।
बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश सारनाथ ( ऋषिपतनम् ) में दिया , जिसे बौद्ध ग्रंथों में धर्मचक्र प्रवर्तन कहा गया है ।
बुद्ध ने अपने उपदेश जनसाधारण की भाषा पालि में दिए ।
बुद्ध ने अपने उपदेश कोशल , वैशाली , कौशाम्बी एवं अन्य राज्यों में दिए ।
बुद्ध ने अपने सर्वाधिक उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए ।
इनके प्रमुख अनुयायी शासक थे – विग्विसार , प्रसेनजित तथा उदयन ।
बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की अवस्था में 483 ई ० पू ० में कुशीनारा दिवरिया , उत्तर प्रदेश ) में चुन्द द्वारा अर्पित भोजन करने के बाद हो गयी , जिसे बौद्ध धर्म में महापरिनिर्वाण कहा गया है ।
मल्लों ने अत्यन्त सम्मानपूर्वक बुद्ध का अन्त्येष्टि संस्कार किया ।
एक अनुश्रुति के अनुसार मृत्यु के बाद बुद्ध के शरीर के अवशेषों को आठ भागों में बाँटकर उन पर आठ स्तूपों का निर्माण कराया गया ।
बुद्ध के जन्म एवं मृत्यु की तिथि को चीनी परम्परा के कैन्टोन अभिलेख के आधार पर निश्चित किया गया है ।
बौद्धधर्म के बारे में हमें विशद ज्ञान पाली त्रिपिटक से प्राप्त होता है ।
बौद्धधर्म मूलतः अनीश्वरवादी है । इसमें आत्मा की परिकल्पना भी नहीं है ।
बौद्धधर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है ।
तृष्णा को क्षीण हो जाने की अवस्था को ही बुद्ध ने निर्वाण कहा है ।
” विश्व दुखों से भरा है ” का सिद्धान्त बुद्ध ने उपनिषद् से लिया ।
अनुयायी दो भागों में विभाजित थे:-
- भिक्षुक : बौद्धधर्म के प्रचार के लिए जिन्होंने संन्यास ग्रहण किया , उन्हें ‘ भिक्षुक ‘ कहा गया ।
- उपासक : गृहस्थ जीवन व्यतीत करते हुए बौद्ध धर्म अपनाने वालों को ‘ उपासक ‘ कहा गया ।
- बौद्धसंघ में सम्मिलित होने के लिए न्यूनतम आयु – सीमा 15 वर्ष थी ।
- बौद्धसंघ में प्रविष्टि होने को उपसम्पदा कहा जाता था ।
- बौद्धधर्म के त्रिरत्न हैं – बुद्ध, धम्म एवं संघ ।
चतुर्थ बौद्ध संगीति के बाद बौद्धधर्म दो भागों हीनयान एवं महायान में विभाजित हो गया ।
धार्मिक जुलूस का प्रारंभ सबसे पहले बौद्धधर्म के द्वारा प्रारंभ किया गया । बौद्धों का सबसे पवित्र त्योहार वैशाख पूर्णिमा है , जिसे बुद्ध पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है । इसका महत्व इसलिए है कि बुद्ध पूर्णिमा के ही दिन बुद्ध का जन्म , ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई ।
बुद्ध ने सांसारिक दुःखों के सम्बन्ध में चार आर्य सत्यों का उपदेश दिया । ये हैं- ( i ) दुःख ( ii ) दुःख समुदाय ( iii ) दुःख निरोध ( iv ) दुःख निरोधगामिनी प्रतिपद्या ।
इन संसारिक दुःखों से मुक्ति हेतु , बुद्ध ने अष्टांगिक मार्ग की बात कही । ये साधन हैं ( i ) सम्यक् दृष्टि ( ii ) सम्यक् संकल्प ( iii ) सम्यक् वाणी ( iv ) सम्यक् कर्मान्त ( v ) सम्यक् आजीव ( vi ) सम्यक् व्यायाम् ( vii ) सम्यक् स्मृति एवं ( viii ) सम्यक् समाधि
बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्गों के पालन करने के उपरान्त मनुष्य की भव तृष्णा नष्ट हो जाती है और उसे निर्वाण प्राप्त हो जाता है ।
निर्वाण बौद्ध धर्म का परम लक्ष्य है , जिसका अर्थ है ‘ दीपक का बुझ जाना ‘ अर्थात् जीवन – मरण चक्र से मुक्त हो जाना । बुद्ध ने निर्वाण – प्राप्ति को सरल बनाने के लिए निम्न दस शीलों पर बल दिया- ( i ) अहिंसा , ( ii ) सत्य , ( iii ) अस्तेय ( चोरी न करना ) , ( iv ) अपरिग्रह ( किसी प्रकार की सम्पत्ति न रखना ) , ( v ) मद्य सेवन न करना , ( vi ) असमय भोजन न करना , ( vii ) सुखप्रद बिस्तर पर नहीं सोना , ( viii ) धन संचय न करना , ( ix ) स्त्रियों से दूर रहना और ( x ) नृत्य गान आदि | से दूर रहना । गृहस्थों के लिए केवल प्रथम पाँच शील तथा भिक्षुओं के लिए दसों शील मानना | अनिवार्य था ।
बुद्ध ने मध्यम मार्ग ( मध्यमा प्रतिपद ) का उपदेश दिया ।
अनीश्वरवाद के संबंध में बौद्धधर्म एवं जैनधर्म में समानता है ।
जातक कथाएँ प्रदर्शित करती है कि बोधिसत्व का अवतार मनुष्य रूप में भी हो सकता है | तथा पशुओं के रूप में भी ।
बोधिसत्व के रूप में पुनर्जन्मों की दीर्घ श्रृंखला के अन्तर्गत बुद्ध ने शाक्य मुनि के रूप में अपना अन्तिम जन्म प्राप्त किया किन्तु इसके उपरान्त मैत्रेय तथा अन्य अनाम बुद्ध अभी अवतरित होने शेष हैं ।
सर्वाधिक बुद्ध मूर्तियों का निर्माण गन्धार शैली के अन्तर्गत किया गया लेकिन बुद्ध की प्रथम मूर्ति संभवतः मथुरा कला के अन्तर्गत बनी थी ।
Notes in Hindi – Indian Histroy – प्राचीन भारत – जैनधर्म – बौद्धधर्म
बुद्ध के जीवन से संबंधित बौद्ध धर्म के प्रतीक | |
घटना | प्रतीक |
जन्म | कमल एवं सांड |
गृहत्याग | घोड़ा |
ज्ञान | पीपल ( योधि वृक्ष ) |
निर्वाण | पद चिह्न |
मृत्यु | स्तूप |
बौद्ध सभाएँ | ||||
सभा | समय | स्थान | अध्यक्ष | शासनकाल |
प्रथम बौद्ध संगीति | 483 ई ० पू ० | राजगृह | महाकश्यप | अजातशत्रु |
द्वितीय बौद्ध संगीति | 383 ई ० पू ० | वैशाली | सबाकामी | कालाशोक |
तृतीय बौद्ध संगीति | 255 ई ० पू ० | पाटलिपुत्र | मोग्गलिपुत्त तिस्स | अशोक |
चतुर्य बौद्ध संगीति | ई ० की प्रथम शताब्दी | कुण्डलवन | वसुमित्र / अश्वघोष | कनिष्क |