Notes in Hindi - Geography - स्थलमंडल (Lithosphere)

Notes in Hindi for Competitive Exams -Geography- स्थलमंडल भाग -1

Notes in Hindi – Geography – स्थलमंडल (Lithosphere)

Geography of India in Hindi

( i ) स्थलमंडल (Lithosphere) , ( ii ) जलमंडल (Hydrosphere) , ( iii ) वायुमंडल (Atmosphere) , ( iv ) (Biosphere)

                                                                                                       

स्थलमंडल (Lithosphere)

Notes in Hindi – Geography – स्थलमंडल (Lithosphere)

  • पृथ्वी की सम्पूर्ण बाह्य परत , जिस पर महाद्वीप एवं महासागर स्थित हैं , स्थलमंडल कहलाती है । पृथ्वी के कुल 29 % भाग पर स्थल तथा 71 % भाग पर जल है ।

  • पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध का 61 % , तथा दक्षिणी गोलार्द्ध के 81 % क्षेत्रफल में जल का साम्राज्य है ।

  • पृथ्वी पर अधिकतम ऊँचाई माउण्ट एवरेस्ट ( 8850 मी ० ) की तथा अधिकतम गहराई मेरियाना गर्त ( 11,033 मी ० ) की है । इस प्रकार पृथ्वी की अधिकतम ऊंचाई एवं अधिकतम गहराई में लगभग 20 किमी का अंतर है । –

  • स्थलमंडल महाद्वीपीय क्षेत्रों में अधिक मोटी ( 40 किमी ) और महासागरीय क्षेत्रों में अपेक्षाकृत पतली ( 20-12 किमी ) है ।

चट्टान ( Rock ) –

  • पृथ्वी की सतह के कठोर भाग को चट्टान कहते हैं , जो पृथ्वी की बाहरी परत की संरचना की मूलभूत इकाइयाँ है
  • उत्पत्ति के आधार पर चट्टान तीन प्रकार की होती है- ( 1 ) आग्नेय ( Igneous ) ( 2 ) अवसादी ( Sedimentary ) ( 3 ) कायान्तरित ( Mertamorphic )
(1) आग्नेय चट्टान ( Igneous rocky ) –  यह मैगमा या लावा के जमने से बनती है । जैसे — ग्रेनाइट , बैसाल्ट , पेग्माटाइट , डायोराइट , ग्रेवो आदि ।
  • आग्नेय चट्टान स्थूल परतरहित , कठोर संघनन एवं जीवाश्मरहित होती है । आर्थिक रूप से यह बहुत ही सम्पन्न चट्टान है । इसमें चुम्बकीय लोहा , निकिल , ताँबा , सीसा , जस्ता , क्रोमाइट ,मैगनीज, सोना तथा प्लेटिनम पाए जाते हैं ।
  • बेसाल्ट में लोहे की मात्रा सर्वाधिक होती है । इस चट्टान के क्षरण से काली मिट्टी का निर्माण होता है ।
  • पेग्माटाइट : कोडरमा ( झारखंड ) में पाया जाने वाला अभ्रक इन्हीं शैलों में मिलता है ।

आग्नेय चट्टानी पिण्ड ( Igneous Rock Bodies ) : मैग्मा के ठण्डा होकर ठोस रूप धारण करने से विभिन्न प्रकार के आग्नेय चट्टानी पिण्ड बनते हैं । इनका नामकरण इनके आकार , रूप , स्थिति तथा आस – पास पाई जाने वाली चट्टानों के आधार पर किया जाता है । अधिकांश चट्टानी पिण्ड अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों से बनते हैं ।

1. बैथोलिथ ( Batholith ) : यह सबसे बड़ा आग्नेय चट्टानी पिण्ड है , जो अन्तर्वेधी चट्टानों से बनता है । वास्तव में यह एक पातालीय पिण्ड है ।  यह मूलतः ग्रेनाइट से बनता है । संयुक्त राज्य अमेरिका का इदाहो वैथोलिथ 40 हजार वर्ग किमी से भी अधिक विस्तृत है । कनाडा का कोस्ट रेंज बैथोलिथ इससे भी बड़ा है ।

2. स्टॉक ( Stock ) : छोटे आकार के बैथेलिथ को स्टॉक कहते हैं । इसका ऊपरी भाग गोलाकार गुम्बदनुमा होता है । स्टॉक का विस्तार 100 वर्ग किमी से कम होता है ।

3. लैकोलिथ ( Lacolith ) : जब मैग्मा ऊपर की परत को जोर से ऊपर को उठता है और गुम्बदकार रूप में जम जाता है तो इसे लैकोलिथ कहते हैं । मैग्मा के तेजी से ऊपर उठने के कारण यह गुम्बदकार ठोस पिण्ड छतरीनुमा दिखाई देता है । उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी भाग में लैकोलिथ के कई उदाहरण मिलते हैं ।

नोट : लैकोलिथ बहिर्वेधी ज्वालामुखी पर्वत का ही एक अन्तर्वेधी प्रतिरूप है ।

4. लैपोलिय ( Lapolith ) : जब मैग्मा जमकर तश्तरीनुमा आकार ग्रहण कर लेता है , तो उसे लैपोलिव कहते हैं । लैपोलिथ दक्षिण अमेरिका में मिलते हैं

5. फैकोलिय ( Phacolith ) : जब मैग्मा लहरदार आकृति में जमता है . तो फैकोलिय कहलाता है ।

6. सिल ( Sill ) : जब मैग्मा भू पृष्ठ के समानान्तर परतों में फैलकर जमता है , तो उसे सिल कहते हैं । इसकी मोटाई एक मीटर से लेकर सैकड़ों मीटर तक होती है । छत्तीसगढ़ तथा झारखंड में सिल पाए जाते हैं । एक मीटर से कम मोटाई वाले सिल को शीट ( Sheet ) कहते है ।

7. डाइक ( Dyke or Dike ) : जब मैग्मा किसी लम्बवत् दरार में जमता है तो डाइक कहलाता है । झारखंड के सिंहभूम जिले में अनेक डाइक दिखाई देते हैं ।

(2) अवसादी चट्टान ( Sedimentary Rock ) : प्रकृति के कारकों द्वारा निर्मित छोटी छोटी चट्टानें किसी स्थान पर जमा हो जाती हैं और बाद के काल में दबाव या रासायनिक प्रतिक्रि या या अन्य कारणों के द्वारा परत जैसी ठोस रूप में निर्मित हो जाती हैं । इन्हें ही अवसादी चट्टान कहते हैं । जैसे – बलुआ पत्थर , चूना पत्थर , स्लेट , कांग्लोमरेट , नमक की चट्टान एवं शेलखरी आदि ।
  • अवसादी चट्टानें परतदार होती हैं । इनमें वनस्पति एवं जीव – जन्तुओं का जीवाश्म पाया जाता है । इन चट्टानों में लौह अयस्क , फास्फेट , कोयला एवं सीमेन्ट बनाने की चट्टान पाई जाती हैं ।
  • खनिज तेल अवसादी चट्टानों में पाया जाता है । अप्रवेश्य चट्टानों की दो परतों के बीच यदि प्रवेश्य शैल की परत आ जाए तो खनिज तेल के लिए अनुकूल स्थिति पैदा हो जाती है ।
  • दामोदर , महानदी तथा गोदावरी नदी बेसिनों की अवसादी चट्टानों में कोयला पाया जाता है ।
  • आगरा का किला तथा दिल्ली का लाल किला बलुआ पत्थर नामक अवसादी चट्टानों का बना है ।
(3) कायान्तरित चट्टान ( Metamorphic rock ) : ताप , दाब एवं रासायनिक क्रियाओं के कारण आग्नेय एवं अवसादी चट्टानों से कायान्तरित चट्टान का निर्माण होता है ।

Notes in Hindi – Geography – स्थलमंडल (Lithosphere)

ज्वालामुखी ( Volcano )

Notes in Hindi – Geography – स्थलमंडल (Lithosphere)

ज्वालामुखी ( Volcano ) भूपटल पर वह प्राकृतिक छेद या दरार है , जिससे होकर पृथ्वी का पिघला पदार्थ लावा , राख , भाप तथा अन्य गैसें बाहर निकलती हैं । बाहर हवा में उड़ा हुआ लावा शीघ्र ही ठंढा होकर छोटे ठोस टुकड़ों में बदल जाता है , जिसे सिंडर कहते हैं । उद्गार में निकलने वाली गैसों में वाष्य का प्रतिशत सर्वाधिक होता है । उद्गार अवधि अनुसार ज्वालामुखी तीन प्रकार की होती है –1 . सक्रिय ज्वालामुखी 2. प्रसुप्त ज्वालामुखी और 3. मृत या शान्त ज्वालामुखी

1.सक्रिय ज्वालामुखी ( Active volcano ) : इसमें अक्सर उद्गार होता है । वर्तमान समय में विश्व में सक्रिय ज्वालामुखियों की संख्या 500 है । इनमें प्रमुख है , इटली का एटना स्ट्राम्बोली मैक्सिको ( उत्तर अमेरिका ) में स्थित कोलिमा ज्वालामुखी बहुत ही सक्रिय ज्वालामुखी है । इसमें 40 बार से अधिक बार उद्गार हो चुका है । 

  • स्ट्राम्बोली भूमध्य सागर में सिसली के उत्तर में लिपारी द्वीप पर अवस्थित है । इसमें सदा प्रज्वलित गैस निकला करती है , जिससे आस – पास का भाग प्रकाशित रहता है , इस कारण इस ज्वालामुखी को ‘ भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ ‘ कहते हैं ।

2. प्रसुप्त ज्वालामुखी ( Dormant volcano ) : जिसमें निकट अतीत में उद्गार नहीं हुआ है । लेकिन इसमें कभी भी उद्गार हो सकता है । इसके उदाहरण हैं – विसुवियस ( भूमध्य सागर ) , क्राकाटोवा ( सुंडा जलडमरूमध्य ) , फ्यूजीयामा ( जापान ) , मेयन ( फिलीपीन्स ) ।

3. शान्त ज्वालामुखी ( Extinct volcano ) : वैसा ज्वालामुखी जिसमें ऐतिहासिक काल से कोई उद्गार नहीं हुआ है और जिसमें पुनः उद्गार होने की संभावना नहीं हो । इसके उदाहरण हैं कोह सुल्तान एवं देमवन्द ( ईरान ) , पोपा ( म्यान्मार ) , किलीमंजारो ( अफ्रीका ) , चिम्वराजो ( दक्षिण अमरीका )

  • कुल सक्रिय ज्वालामुखी का अधिकांश प्रशान्त महासागर के तटीय भाग में पाया जाता है । प्रशान्त महासागर के परिमेखला को अग्नि वलय ( Fire ring of the pacific ) भी कहते हैं ।
  • सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी अमेरिका एवं एशिया महाद्वीप के तटों पर स्थित है ।
  • आस्ट्रेलिया महाद्वीप में एक भी ज्वालामुखी नहीं है । 
  • गेसर ( Geyser ) : बहुत से ज्वालामुखी क्षेत्रों में उद्गार के समय दरारों तथा सुराखों से होकर जल तथा वाष्प कुछ अधिक ऊँचाई तक निकलने लगते हैं । इसे ही गेसर कहा जाता है । जैसे — ओल्ड फेवफुल गेसर , यह U.S.A. के यलोस्टोन पार्क में है । इसमें प्रत्येक मिनट उद्गार होता रहता है ।
  • विश्व का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी पर्वत कोटापैक्सी ( इक्वेडोर ) है , जिसकी ऊँचाई 19,613 फीट है ।
  • विश्व की सबसे ऊंचाई पर स्थित सक्रिय ज्वालामुखी ओजस डेल सालाडो ( 6885 मी ० ) एण्डीज पर्वतमाला में अर्जेन्टीना – चिली देश के सीमा पर स्थित है ।
  • विश्व की सबसे ऊंचाई पर स्थित शान्त ज्वालामुखी एकांकागुआ ( Aconcagua ) एण्डीज पर्वतमाला पर ही स्थित है , जिसकी ऊँचाई 6960 मी ० है ।

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