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रिश्ते मानव जीवन का मूल होते हैं. प्रसिद्ध लेखक और प्रेरक वक्ता शिव खेड़ा रिश्तों के महत्व पर जोर देने के लिए मोर्चे पर तैनात दो सैनिकों का उदाहरण देते हुए समझा रहे है.

भगवान जिन्हें खून के रिश्तों में बांधना भूल जाता है, उन्हें सच्चे दोस्त बनाकर अपनी गलती सुधारता है. कुछ ऐसी ही दोस्ती की मिसाल देते है मशहूर लेखक शिव खेड़ा अपने इस उदाहरण से.

दो दोस्त थे एक का नाम हैरी और दूसरे का नाम बिल. दोनों स्कूल में साथ पढ़ें, कॉलेज की पढ़ाई भी साथ ही, और फिर दोनों ने फौज भी ज्वाइन कर ली. हैरत की बात ये कि दोनों एक ही यूनिट में थे. एक बार की बात है जब जंग में चारों तरफ से गोलियां चल रही थीं. हैरी ट्रेंच में था और बिल बाहर था. तभी अचानक अंधेरे में से आवाज आती है, ”हैरी मेरी मदद करो, मैं जख्मी हूं”. आवाज सुनते ही हैरी समझ गया कि ये तो बिल की आवाज है. हैरी तुरंत उसके पास जाने लगा तभी उसके दिमाग में आया उसे एक बार कप्तान से पूछ लेना चाहिए. लेकिन जब हैरी ने कप्तान से पूछा तो उसने मना कर दिया और कहा तुम बाहर जाओगे और तुम्हें कुछ हो गया तो फौजियों की कमी हो जाएगी. चारों तरफ गोलियां चल रही हैं, वैसे भी बिल शायद न बचे. हैरी ये सुनकर बैठ जाता है, तभी बिल की दोबारा आवाज आती है. ”हैरी मैं जख्मी हूं, मेरी मदद करो.”

अब क्योंकि कप्तान ने एक बार मना कर दिया था तो हैरी की उनसे पूछने की दोबारा हिम्मत नहीं हुई. लेकिन जब बिल लगातार आवाज देता है, तो हैरी दौड़ कर जाकर बिल को घसीट कर ट्रेंच में फेंक देता है. कप्तान ये सब देख कर गुस्से में हैरी पर चिल्लाता है, और कहता है कि तुम्हें नहीं जाना चाहिए था. अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो यहां एक आदमी कम हो जाता. ये तो बचा ही नहीं, और तुम्हें भी बाहर जाकर गोली लग सकती थी. हैरी कहता है नहीं कप्तान मैनें कोई गलती नहीं थी. जब मैं बिल के पास पहुंचा था, उस वक्त बिल जिंदा था और उसके आखिरी शब्द थे, ”मुझे पता था तुम जरूर आओगे.”

इस उदाहरण से यही पता चलता है कि बुरे वक्त में काम आना ही सच्ची दोस्ती का मुख्य आधार है. सिर्फ सुख में साथ रहने वाले दोस्त की श्रेणी में नहीं आते.

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