Geography Notes in hindi for Competitive exams – Pressure, wind and air pressure -3
Geography Notes in hindi
Geography Notes in hindi – Atmosphere – Pressure, wind and air pressure
Geography Notes in Hindi – Atmosphere – Pressure, wind and air pressure
Geography in Hindi
( i ) स्थलमंडल (Lithosphere), ( ii ) जलमंडल (Hydrosphere), ( iii ) वायुमंडल (Atmosphere), ( iv ) जैवमंडल (Biosphere)
वायुमंडल (Atmosphere)
वायुदाब दाब , पवन एवं वायुराशियाँ
(Pressure, wind and air pressure)
Geography Notes in Hindi – Atmosphere – Pressure, wind and air pressure
वायुमंडलीय दाब , पवन एवं वायुराशियाँ
1. वायुदाब :-
- सामान्य दशाओं में समुद्रतल पर वायुदाब पारे के 76 सेमी ० या 760 मिमी ० ऊँचे स्तम्भ द्वारा पड़ने वाला दाब वायुदाब होता है ।
- वायुदाब बैरोमीटर से मापा जाता है । वायुदाब को मौसम के पूर्वानुमान के लिए एक महत्त्वपूर्ण सूचक माना जाता है ।
- वायुमंडलीय दाब की इकाई बार ( bar ) है (1 bar =105 N / m2 ) ।
- समदाब रेखा ( Isobar ) – वह कल्पित रेखा जो समुद्रतल के बराबर घटाए हुए समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती है , समदाब रेखा ( Isobar ) कहते हैं । वायुदाब को मानचित्र पर समदाब रेखा द्वारा दर्शाया जाता है । दूरी की प्रति इकाई पर दाब के घटने को दाब प्रवणता कहते हैं ।
- जब रेखा एक – दूसरे के पास होती है तो दाब प्रवणता अधिक होती है । परन्तु जब समदाब रेखाएँ एक – दूसरे से दूर होती हैं तो दाब प्रवणता कम होती है ।
पृथ्वी के धरातल पर चार वायुदाब कटिबंध हैं –
1. विषुवत् रेखीय निम्न वायुदाब : यह पेटी भूमध्य रेखा से 10 ° उत्तरी तथा 10 ° दक्षिणी अक्षांशो के बीच स्थित है ।
- यहाँ साल भर सूर्य की किरणें लम्बवत् पड़ती है , जिसके कारण तापमान हमेशा ऊँचा रहता है ।
- इस कटिबंध में धरातलीय क्षैतिज पवनें नहीं चलती बल्कि अधिक तापमान के कारण वायु हल्की होकर ऊपर को उठती है और संवहनीय धाराओं का जन्म होता है । इसलिए इस कटिबन्ध को शान्त कटिबन्ध या डोलड्रम कहते हैं ।
नोट : विषुवत रेखा पर पृथ्वी के घूर्णन का वेग सबसे अधिक होता है , जिससे यहाँ पर अपकेन्द्रीय बल सर्वाधिक होती है , जो वायु को पृथ्वी के पृष्ठ से परे धकेलती है । इसके कारण भी यहाँ पर वायुदाब कम होता है ।
2. उपोष्ण उच्च वायुदाय : उत्तरी तथा ध्रुवीय उच्च दक्षिणी गोलार्डों में क्रमशः कर्क और मकर रेखाओं से 35 ° अक्षांशों तक उच्च दाब पेटियाँ पाई जाती है ।
- यहाँ उच्च दाब होने के दो कारण है
( i ) विषुवत रेखीय कटिबन्ध से गर्म होकर उठने वाली वायु ठण्डी और भारी होकर कर्क तथा मकर रेखाओं से 35 ° अक्षांशों के बीच नीचे उतरती है और उच्च वायुदाब उत्पन्न करती है|
( ii ) पृथ्वी के दैनिक गति के कारण उपध्रुवीय क्षेत्रों से वायु विशाल राशियाँ कर्क तथा मकर रेखाओं से 35 ° अक्षांशों के बीच एकत्रित हो जाती हैं , जिससे वहाँ पर उच्च वायुदाब उत्पन्न हो जाती है ।
नोट : विषुवत रेखा से 30 ° -35 ° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्द्धों में उच्च वायुदाब धुवीय उच्च वायु दाब कटिबन्ध की पेटियाँ उपस्थित होती हैं । इस उच्च वायुदाब वाली पेटी को अश्व अक्षांश कहते हैं । इसका कारण यह है कि मध्य युग में यूरोप में खेती के लिए पश्चिमी द्वीप समूह में पालदार जलयानों में लादकर घोड़े भेजे जाते थे । प्रायः इन जलयानों को इन अक्षांशों के बीच वायु शांत रहने के कारण आगे बढ़ने में कठिनाई होती थी | अत: जा;यानों का भार कम करने के लिए कुछ घोड़े समुद्र में फेंक दिये जाते थे । 4
3. उपधुवीय निम्न वायुदाब : 45 ° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांशों से क्रमशः आर्कटिक तथा अंटार्कटिक वृत्तों के बीच निम्न वायु भार की पेटियाँ पाई जाती है । जिसे उपध्रुवीय निम्न दाब पेटियों कहते हैं ।
4.धुवीयउच्च वायुदाब : 80 ° उत्तरी तथा दक्षिणी अक्षांश से उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव तक उच्च दाब पेटियाँ पाई जाती है ।
Geography Notes in Hindi – Atmosphere – Pressure, wind and air pressure
पवन ( Wind )
- पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब में क्षतिज विषमताओं के कारण हवा उच्च वायुदाब क्षेत्र से निम्न वायुदाब क्षेत्र की ओर बहती है । क्षैतिज रूप से इस गतिशील हवा को पवन कहते हैं ।
- ऊर्ध्वाधर दिशा में गतिशील हवा को वायुधारा ( Air current ) कहते हैं ।
- यदि पृथ्वी स्थिर होती और उसका धरातल समतल होता तो पवन उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र से सीधे निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र की ओर समदाब रेखाओं पर समकोण बनाती हुई चलती है , परन्तु वास्तविक स्थिति यह है कि पृथ्वी अपने अक्ष पर घूर्णन कर रही है और उसका धरातल समतल नहीं है । अतः पवन कई कारणों के प्रभावाधीन अपनी दिशा में परिवर्तन करती हुई चलती है । ये कारण हैं – दाब प्रवणता बल , कॉरिआलिस प्रभाव , अभिकेन्द्रीय त्वरण एवं भूघर्षण ।
नोट : कॉरिआलिस प्रभाव ( Coriolis Effect ) पृथ्वी के घूर्णन के कारण पवने अपनी मूल दिशा में विक्षेपित हो जाती हैं । इसे कॉरिआलिस बल कहते हैं । इसका नाम फ्रांसीसी वैज्ञानिक के नाम पर पड़ा है जिसने सबसे पहले इस बल के प्रभाव का वर्णन 1835 ई ० में किया । इस बल के प्रभावाधीन उत्तरी गोलार्द्ध में पवनें दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी बाई ओर मुड़ जाती हैं । इस विक्षेप को फेरेल नामक वैज्ञानिक ने सिद्ध किया था , अतः इसे फेरेल का नियम ( Farrel’s Law ) कहते हैं । इसे बाइज-बैलेट नियम द्वारा भी समझा जा सकता है ।
बाइज-बैलेट – इस नियम के अनुसार , “ यदि कोई व्यक्ति उत्तरी गोलार्द्ध में पवन की ओर पीठ करके खड़ा हो , तो उच्च दाब उसके दाई ओर तथा निम्न दाब उसके बाई ओर होगा । ” दक्षिणी गोलार्द्ध में स्थिति इसके ठीक विपरीत होगी ।
- कॉरिआलिस बल प्रभाव विषुवत रेखा पर शून्य होता है । अर्थात् विषुवत रेखा पर पवनों की दिशा में कोई विक्षेप नहीं होता है ।
- इस बल का अधिकतम प्रभाव ध्रुवों पर होता है । अर्थात् ध्रुवों पर पवनों की दिशा में अधिकतम विक्षेप होता है ।
पवन निम्न प्रकार के होते हैं – 1.प्रचलित पवन 2. मौसमी पवन और 3. स्थानीय पवन
1. प्रचलित पवन : पृथ्वी के विस्तृत क्षेत्र पर एक ही दिशा में वर्ष भर चलने वाली पवन को प्रचलित पवन या स्थायी पवन कहते हैं । स्थायी पवनें एक वायु – भार कटिबन्ध से दूसरे वायु -भार कटिबन्ध की और नियमित रूप से चला करती है । इसके उदाहरण हैं — पछुआ पवन , व्यापारिक पवन और ध्रुवीय पवन ।
→ पछुआ पवन :दोनों गोलार्द्ध में उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर चलने वाली स्थायी हवा को , इनकी पश्चिम दिशा के कारण , पछुआ पवन कहा जाता है । पछुआ पवन का सर्वश्रेष्ठ विकास 40 ° से 65 ° द ० अक्षाशों के मध्य पाया जाता है । यहाँ के इन अक्षांशों को गरजता चालीसा , प्रचण्ड पचासा तथा चीखता साठा कहा जाता है । ये सभी नाम नाविकों के दिए हुए हैं
→ व्यापारिक पवन : लगभग 30 ° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के क्षेत्रों या उपोष्ण उच्च वायुदाब कटिबंधों से भूमध्य रेखीय निम्न वायुदाब कटिबंधों की ओर दोनो गोलार्द्ध में वर्ष भर निरन्तर प्रवाहित होने वाले पवन को व्यापारिक पवन कहा जाता है । कारिऑलिस बल और फेरल के नियम के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी दायीं ओर तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अपनी बायीं ओर विक्षेपित हो जाता है ।
→ ध्रुवीय पवन : ध्रुवीय उच्च वायुदाब की पेटियों से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब की पेटियों की ओर प्रवाहित पवन को धुवीय पवन के नाम से जाना जाता है । उत्तरी गोलार्द्ध में इसकी दिशा उत्तर – पूर्व से दक्षिण – पश्चिम की ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण पूर्व से उत्तर पश्चिम की ओर है ।
2. मौसमी पवन : मौसम या समय के परिवर्तन के साथ जिन पवनों की दिशा बदल जाती है उन्हें मौसमी पवन कहा जाता है । जैसे – मौनसूनी पवन , स्थल समीर तथा समुद्री समीर ( पवन ) ।
3. स्थानीय पवन : प्रमुख गर्म स्थानीय पवन-
- चिनुक : यह संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा में रॉकी पर्वत श्रेणी के पूर्वी ढाल के साथ चलने वाला गर्म या शुष्क पवन है । यह पवन रॉकी पर्वत के पूर्व के पशुपालकों के लिए बड़ा ही लाभदायक है , क्योंकि शीतकाल की अधिकांश अवधि में यह बर्फ को पिघलाकर चरागाहों को बर्फ से मुक्त रखता है ।
- फॉन : यह आल्पस पर्वत के उत्तरी ढाल से नीचे उतरने वाली नाम स्थान गर्म एवं शुष्क हवा है । इसका सर्वाधिक प्रभाव स्विट्जरलैंड ट्रैमोण्टेन मध्य यूरोप में होता है । इसके प्रभाव से बर्फ पिघल जाती है और पशुचारकों के लिए चरागाह मिल जाता है । इसके प्रभाव अंगूर जल्दी – पक जाते है ।
- हरमन : यह सहारा रेगिस्तान से उत्तर – पूरब दिशा में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है । यह पवन सहारा से गिनी तट की ओर बहती है । गिनी तट पर इसे डॉक्टर हवा कहा जाता है ।
- सिराको : यह सहारा मरुस्थल से भूमध्य सागर की ओर बहने वाली गर्म हवा है । जब यह भूमध्य सागर पार करती है तो आद्र हो जाती है और इटली पहुँच जाती है । इसके अन्य स्थानीय नाम भी हैं , जैसे— ( 1 ) खमसिन ( मिस्र में ) ( ii ) गिविली ( लीबिया में ) , ( iii ) चिली ( ट्यूनिशिया में ), ( iv ) लेस्ट ( मैड्रिया में ) , ( v ) सिरॉको ( इटली में और ( vi ) लेबेक ( स्पेन में ) ।
- सिमूम : यह अरब रेगिस्तान में बहने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है ।
- ब्लेक रोलर : यह उत्तरी अमेरिका के विशाल मैदान में दक्षिणी पश्चिमी या उत्तरी पश्चिमी तेज धूल भरी चलने वाली आँधी है ।
- ब्रिक फील्डर : यह आस्ट्रेलिया के विक्टोरिया प्रांत में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है ।
- नारवेस्टर : यह न्यूजीलैंड में उच्च पर्वतों से उतरने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है ।
- शामल : यह इराक तथा फारस की खाड़ी में चलने वाली गर्म एवं शुष्क हवा है ।
- साण्टा आना : यह दक्षिणी कैलीफोर्निया में साण्टा आना घाटी से चलने वाली गर्म एवं शुष्क धूल भरी आँधी है ।
- कोयमबैंग : यह जावा इण्डोनेशिया में बहने वाली गर्म हवा है । यह तम्बाकू की खेती को काफी नुकसान पहुँचाती है ।
- जेट – प्रवाह Jet Streams ) : क्षोभमंडल की ऊपरी परत में बहुत तीव्र गति से चलने वाले संकरे, नलिकाकार एवं विसर्पी पवन प्रवाह को जेट प्रवाह कहते हैं । यह 6 से 12 किमी की ऊचाई पर पश्चिम से पूर्व की और प्रवाहित होता है । यह दोनों गोलाद्धों में पाया जाता है ,परन्तु उत्तरी गोलार्द्ध में यह अधिक शक्तिशाली होता है । इसमें वायु 120 किमी प्रति घंटा से चलती है । जेट – प्रवाह वायुमंडलीय विक्षोभों , चक्रवातों , प्रतिचक्रवातों तूफानों और वर्षा को उत्पन्न करने में सहायक होते हैं । यह पृथ्वी पर तापमान के वितरण का संतुलन बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।
वायु राशियों ( AirMasses ) : वायुमंडल का वह विशाल एवं विस्तृत भाग जिसमें तापमान तथा आर्द्रता के भौतिक लक्षण क्षैतिज दिशा में समरूप हों , वायु राशि कहलाता है ।
- सामान्यतः वायु राशियाँ सैकड़ों किलोमीटर तक विस्तृत होती हैं । एक वायु राशि में कई परतें होती है . जो एक – दूसरे के ऊपर क्षैतिज दिशा में फैली होती हैं । प्रत्येक परत में वायु के तापमान तथा आर्द्रता की स्थिति लगभग समान होती है । यह जलवायु तथा मौसम के अध्ययन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है ।
वाताग्र ( Fronts ) : दो विभिन्न प्रकार की वायु राशियाँ सुगमता से आपस में मिश्रित नहीं होती और तापमान तथा आर्द्रता सम्बन्धी अपना अस्तित्व बनाए रखने के प्रयास करती है । इस प्रकार दो विभिन्न वायु – राशियाँ एक सीमातल द्वारा अलग रहती हैं । इस सीमातल को ही वाताग्न ( Fronts ) कहते हैं ।
- जब गर्म वायु हल्की होने के कारण टण्डी तथा भारी वायु के ऊपर चढ़ जाती है तो उसे उष्ण वाताग्न तथा जब ठण्डी तथा भारी वायु उष्ण तथा हल्की वायु राशि के विरुद्ध आगे बढ़ती है तो उसे ऊपर की ओर उठा देती है तो इसे शीत वाताग्न कहते हैं ।
आर्द्रता ( Humidity ) : वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प को वायुमंडल की आर्द्रता कहते हैं । यह तीन प्रकार की होती है –
( i ) निरपेक्ष आर्द्रता ( Absolute Humidity ) : वायु की प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं । इसे ग्राम प्रति घन मीटर में व्यक्त किया जाता है ।
( ii ) विशिष्ट आर्द्रता ( SpecificHumidity ) : वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं । इसे ग्राम प्रति किग्रा ० की इकाई में मापा जाता है ।
( iii ) सापेक्षा आईता ( Relative Humidity ) : किसी भी तापमान पर वायु में उपस्थित जलवाष्प तथा उसी तापमान पर उसी वायु की जलवाष्प धारण करने की क्षमता के अनुपात को सापेक्ष आर्द्रता कहते हैं ।
- सापेक्ष आर्द्रता जलवाष्प की मात्रा एवं वायु के तापमान पर निर्भर करता है । इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है । वायु में जलवाष्म की मात्रा अधिक होने पर सापेक्ष आर्द्रता अधिक होती है । वायु का तापमान कम होने पर सापेक्ष आर्द्रता बढ़ जाती है एवं तापमान बढ़ जाने पर सापेक्ष आर्द्रता कम हो जाती है ।
- संतृप्त वायु की सापेक्ष आर्द्रता 100 % होती है ।
संघनन ( Condensation ) : जल की गैसीय अवस्था के तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होने की क्रिया को संघनन कहते हैं ।
- यह दो कारकों पर निर्भर करता है- ( i ) तापमान में कमी पर तथा ( ii ) वायु की सापेक्ष आर्द्रता पर ।
ओसांक ( Dew point ) : वायु के जिस तापमान पर जल अपनी गैसीय अवस्था से तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होता है , उसे ओसांक कहते हैं ।
- ओसांक पर वायु संतृप्त हो जाती है और उसकी सापेक्ष आर्द्रता 100 % होती है ।
- ओस पड़ने के लिए ओसांक का हिमांक ( 0 ° C ) से ऊपर होना चाहिए ।
पाला या तुषार ( Frost ) : जब ओसांक , हिमांक से नीचे होता है तब ओस के स्थान पर पाला पड़ता हैं । दूसरे शब्दों में , जमी हुई ओस को ही पाला कहते हैं ।
कोहरा ( Fog ) : वायुमंडल की निचली परतों में एकत्रित धूल कण , धुएँ के रज एवं संघनित जल – पिण्डों को कोहरा कहते हैं । ओसांक से नीचे वायु का तापमान कम होने पर कोहरे का निर्माण होता है । इसमें दृश्यता एक किमी से कम होती है ।
धुंध (Mist )- हल्के – फुल्के कोहरे को कुहासा या धुन्ध कहते हैं । इसमें दृश्यता एक किमी से अधिक किन्तु दो किमी से कम होती है ।
बादल ( Clouds ) : बादल मुख्यतः हवा के रुद्धोष्म ( Adiabatic ) प्रक्रिया द्वारा ठंडे होने पर उसके तापमान के ओसांक से नीचे गिरने से बनते है । यह अल्प घनत्व के कारण वायुमंडल में तैरते हैं । रूप के आधार पर बादल निम्न प्रकार के होते हैं
( i ) पक्षाभ बादल : ये हिम के कणों से बने ऊँचे , सफेद और पतले बादल होते हैं ।
( ii ) कपासी वादल : इनका आकार समतल एवं शीर्ष गुम्बदनुमा होता है ।
( iii ) स्तरी बादल : ये परतदार चादर जैसे लगते हैं । ये अधिकांश या पूर्ण आकाश को ढंके रहते हैं । ये दो या तीन किमी की ऊँचाई पर पाए जाते हैं ।
वर्षा ( Rainfall ) : जब जलवाष्प की बूंदे जल के रूप में पृथ्वी पर गिरती है , तो उसै वर्षा कहते हैं । वायु के ठण्डा होने की विधियों के अनुसार वर्षा तीन प्रकार की होती हैं
(i) संवहनीय वर्षा ( Convectional Rainfalm) : जब भूतल बहुत गर्म हो जाता है , तो उसके साथ लगने वाली वायु भी गर्म हो जाती है । वायु गर्म होकर फैलती है और हल्की हो जाती है । यह हल्की वायु ऊपर को उठने लगती है और संवहनीय धाराओं का निर्माण होता है । ऊपर जाकर यह वायु ठण्डी हो जाती है और इसमें उपस्थित जलवाष्य का संघनन होने लगता है । संघनन से कपासी मेघ बनते हैं , जिससे घनघोर वर्षा होती है । इसे संवहनीय वर्ष कहते हैं ।
( ii ) पर्वतकृत वर्षा ( Orographic Rainfall ) : जब जलवाष्ण से लदी हुई गर्म वायु को किसी पर्वत या पठार की ढलान के साथ ऊपर चढ़ना पड़ता है , तो यह वायु ठण्डी हो जाती है । ठण्डी होने से यह संतृप्त हो जाती है और ऊपर चढ़ने से जलवाष्प का संघनन होने लगता है । इससे वर्षा होती है । इसे पर्वतकृत वर्षा कहते हैं ।
( iii ) चक्रवाती बर्षा ( Cyclonic or Frontal Rainfany) : चक्रवातों द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवाती अथवा वाताग्री वर्षा कहते हैं ।
चक्रवात , प्रतिचक्रवात
- चक्रवात , प्रतिचक्रवात इसकी उत्पत्ति विभिन्न प्रकार की वायुराशियों के मिश्रण के फलस्वरूप वायु की तीव्र गति से ऊपर उठकर बवंडर का रूप ग्रहण करने से होती है ।
- चक्रवात : केन्द्र में कम दाब की स्थापना होने पर बाहर की ओर दाब बढ़ता जाता है । इस अवस्था में हवाएँ बाहर से भीतर की ओर चलती है , इसे ही ‘ चक्रवात ‘ कहा जाता है ।
- चक्रवात में वायु चलने की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के विपरीत ( Anti clockwise ) एवं दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सूई दिशा ( Clockwise ) में होती है । टारनेडो , हरीकेन्स व टाइफून चक्रवात के उदाहरण हैं ।
- प्रति – चक्रवात : जब केन्द्र में दाब अधिक होता है तो केन्द्र से हवाएँ बाहर की ओर चलती है . इसे प्रति – चक्रवात कहा जाता है । इसमें वाताग्र ( Fronts ) का अभाव होता है ।
- प्रति चक्रवात में वायु की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के अनुकूल ( Clockwise ) तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में घड़ी की सूइयों के विपरीत ( Anti – clockwise ) होती है ।
- चकवात में हवा केन्द्र की तरफ आती है और ऊपर उठकर ठंडी होती है और वर्षा कराती है , जबकि प्रति – चक्रवात में मौसम साफ होता है ।
टारनेडो : यह भयंकर अल्पकालीन तूफान है । आस्ट्रेलिया एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के मिसीसिपी इलाकों में इस तूफान को ‘ टारनेडो ‘ कहा जाता है । वह जल एवं स्थल दोनों में उत्पन्न होता है । इसमें स्थलीय हवाओं का वेग 325 किमी / घंटा होता है ।
हरीकेन्स : अटलांटिक महासागर में उठने वाली तथा पश्चिमी द्वीप समूह के चारों ओर चलने वाली भयंकर चक्रवाती तूफान है । इसकी गति 121 किमी / घंटा होती है ।
टाइफून : प्रशांत महासागर में उठने वाली तथा चीन सागर में चलने वाली वक्रगामी कटिबन्धी चक्रवात को टाइफून कहते हैं । इसकी गति 160 किमी / घंटा होती है ।