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बाल दिवस हर साल 14 नवम्बर को मनाया जाता है और यह एक विशेष दिन है जब हम बच्चों की अनमोलता और उनके समर्पण की प्रशंसा करते हैं। यह दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है, जो खुद एक बच्चों के प्रेमी थे और उनके उद्धारण के अनुसार, “बच्चे मेरे भविष्य हैं”। इस दिन के अवसर पर, स्कूल और समुदायों में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिससे बच्चों को नेतृत्व और सहिष्णुता की भावना में विकसित किया जा सकता है। इस अद्वितीय दिन को बच्चों के संबंध में सजीव कार्यक्रमों और खेलों के साथ धूमधाम से मनाना हमारे समाज में बच्चों को महत्वपूर्ण और समर्पित सदस्यों के रूप में स्थापित करता है।

बाल दिवस पर 5 कविताएं

1. हम थें और बस हमारें सपने

हम थें और बस हमारें सपने,
उस छोटी सी दुनियां के थे हम शहजादे।
लग़ते थे सब अपनें-अपनें,
अपना था वह मिट्टीं का घरौदा,
अपनें थे वह गुड्डें-गुडिया,
अपनी थी वह छोटी सी चिडिया,
और उसकें छोटें से बच्चें।
अपनी थी वह परियो की क़हानी,
अपने से थें दादा-दादी, नाना और नानी।
अपना सा था वह अपना गांव,
बारिश की बूंदे कागज की नाव।
माना अब वह सपना सा हैं,
पर लग़ता अब भीं अपना सा हैं।

Shiv Khera

दुनियां के सुख़ दुख़ से बेगानें,
चलतें थे हम बनक़े मस्तानेे।
कभीे मुहल्ले की गलियो मे,
और कभीं आमो के बागो मे।
कभीं अमरुद के पेड की डालियो पर,
और कभीं खेतो की पगडडियों पर।
इस मस्ती से ख़ेल-ख़ेल मे,
न ज़ाने कब बूढ़े हो गये हम।
बींत गया वह प्यारा बचपन,
न ज़ाने कहां ख़ो गये हम।
– निधि अग्रवाल

2. बचपन

कुदरत ने जो दिया मुझे ,
है अनमोल खजाना !

कितना सुगम सलोना वो
ये मुश्किल कह पाना !!

दमक रहा ऐसे मानो ,
सोने सा बचपना फिक्र !

फिक्र नही कल की
न किसी से सिकवा गिला !!

मित्रो की जब टोली निकले ,
क्या खाये ,बिन खाये !

बडे चाव से ऐसे चलते
मानो जन्ग जीत कर आये !!

कोमल हाथो से बलखाकर ,
जब करते आतिशवजी !

घुन्घरू बान्धे हुए पैर पर
तब चलती खुशियो की आन्धी !!

उन्हे देख मा की ममता का ,
उमड रहा सैलाब !

मन मन्दिर महका रहा
बगिया का खिला गुलाब !!

– अनुज तिवारी इन्दवार

3. एक बचपन का जमाना था

एक बचपन का जमाना था,
जिस में खुशियों का खजाना था..

चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दिवाना था..

खबर ना थी कुछ सुबहा की,
ना शाम का ठिकाना था..

थक कर आना स्कूल से,
पर खेलने भी जाना था..

माँ की कहानी थी,
परीयों का फसाना था..

बारीश में कागज की नाव थी,
हर मौसम सुहाना था..

हर खेल में साथी थे,
हर रिश्ता निभाना था..

गम की जुबान ना होती थी,
ना जख्मों का पैमाना था..

रोने की वजह ना थी,
ना हँसने का बहाना था..

क्युँ हो गऐे हम इतने बडे,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।

– कोमल प्रसाद साहू

4. चांद का कुर्ता

हठ कर बैठा चांद एक दिन, माता से यह बोला,

सिलवा दो मां मुझे ऊन का मोटा एक झिंगोला।

सनसन चलती हवा रात भर, जाड़े से मरता हूं,

ठिठुर-ठिठुरकर किसी तरह यात्रा पूरी करता हूं।

आसमान का सफ़र और यह मौसम है जाड़े का,

न हो अगर तो ला दो कुर्ता ही कोई भाड़े का।

बच्चे की सुन बात कहा माता ने, ‘‘अरे सलोने!

कुशल करें भगवान, लगें मत तुझको जादू-टोने।

जाड़े की तो बात ठीक है, पर मैं तो डरती हूँ,

एक नाप में कभी नहीं तुझको देखा करती हूँ।

कभी एक अंगुल भर चौड़ा, कभी एक फुट मोटा,

बड़ा किसी दिन हो जाता है, और किसी दिन छोटा।

घटता-बढ़ता रोज़ किसी दिन ऐसा भी करता है,

नहीं किसी की भी आंखों को दिखलाई पड़ता है।

अब तू ही ये बता, नाप तेरा किस रोज़ लिवाएं,

सी दें एक झिंगोला जो हर रोज बदन में आए।

– रामधारी सिंह ‘दिनकर’

5. सबसे पहले

आज उठा मैं सबसे पहले!

सबसे पहले आज सुनूँगा,

हवा सवेरे की चलने पर,

हिल, पत्तों का करना ‘हर-हर’

देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले,

लाल, सुनहले!

आज उठा मैं सबसे पहले!

सबसे पहले आज सुनूँगा,

चिड़िया का डैने फड़का कर

चहक-चहककर उड़ना ‘फर-फर’

देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले,

लाल सुनहले!

आज उठा मैं सबसे पहले!

सबसे पहले आज चुनूँगा,

पौधे-पौधे की डाली पर,

फूल खिले जो सुंदर-सुंदर

देखूँगा, पूरब में फैले बादल पीले

लाल, सुनहले

आज उठा मैं सबसे पहले!

सबसे कहता आज फिरूँगा,

कैसे पहला पत्ता डोला,

कैसे पहला पंछी बोला,

कैसे कलियों ने मुँह खोला

कैसे पूरब ने फैलाए बादल पीले,

लाल, सुनहले!

आज उठा मैं सबसे पहले!

– हरिवंशराय बच्चन

हम आशा करते हैं कि आप इन कविताओं से प्रेरित हों और अपने बचपन के और अधिक क्षणों का आनंद लें। हम आपको एक बहुत सुखद बाल दिवस की शुभकामनाएं भेजते हैं।

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