Geography Notes in hindi - Atmosphere - वायुमंडल - Structure of the Atmosphere

Geography Notes in hindi
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Geography Notes in hindi – Atmosphere – वायुमंडल – Structure of the Atmosphere

Geography Notes in hindi  – Atmosphere – वायुमंडल – Structure of the Atmosphere

Geography in Hindi

( i ) स्थलमंडल (Lithosphere) , ( ii ) जलमंडल (Hydrosphere) , ( iii ) वायुमंडल (Atmosphere), ( iv ) जैवमंडल  (Biosphere)

                                                                                                       

वायुमंडल (Atmosphere)

वायुमंडल की संरचना 

(Structure of the Atmosphere)

Geography Notes in hindi – Atmosphere – वायुमंडल – Structure of the Atmosphere

  • वायुमंडल को निम्न परतों में बाँटा गया है –

  1. क्षोभ मंडल ( Troposphere )
  2. समताप मंडल ( Stratosphere )
  3. ओजोन मंडल ( Ozonosphere )
  4. आयन मंडल ( lonosphere ) और
  5. बहिर्मडल ( Exosphere ) 

1. क्षोभ मंडल ( Troposphere )

    • यह वायुमंडल का सबसे नीचे वाली परत है । 
  • इसकी ऊँचाई ध्रुवों पर 8 किमी तथा विषुवत् रेखा पर लगभग 18 किमी होती है ।
  • क्षोभ मंडल में तापमान की गिरावट की दर प्रति 165 मी ० की ऊँचाई पर 1 ° C अथवा 1 किमी की ऊंचाई पर 6.4 ° C होती है ।
  • सभी मुख्य वायुमंडलीय घटनाएँ जैसे बादल , आँधी एवं वर्षा इसी मंडल में होती हैं ।
  • इस मंडल को संवहन मंडल कहते हैं , क्योंकि संवहन धाराएँ इसी मंडल की सीमा तक सीमित होती हैं । इस मंडल को अधो मंडल भी कहते है ।

2. समताप मंडल ( Stratosphere )

  • समताप मंडल 18 से 32 किमी की ऊँचाई तक है । इसमें ताप समान रहता है । 
  • इसमें मौसमी घटनाएँ जैसे आँधी , बादलों की गरज , बिजली कड़क , धूल – कण एवं जलवाष्प आदि कुछ नहीं होती हैं । 
  • इस मंडल में वायुयान उड़ाने की आदर्श दशा पायी जाती है ।
  • समताप मंडल की मोटाई ध्रुवों पर सबसे अधिक होती है , कभी – कभी विषुवत् रेखा पर इसका लोप हो जाता है । 
  • कभी – कभी इस मंडल में विशेष प्रकार के मेधों का निर्माण होता है , जिन्हें मूलाभ मेघ ( Mother of pearl cloud ) कहते हैं ।

3. ओजोन मंडल ( Ozonosphere )-

  • धरातल से 32 किमी से 60 किमी के मध्य ओजोन मंडल है ।
  • इस मंडल में ओजोन गैस की एक परत पायी जाती है , जो सूर्य से आने वाली पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर लेती है । इसीलिए इसे पृथ्वी का सुरक्षा कवच कहते हैं ।
  • ओजोन परत को नष्ट करने वाली गैस CFC ( Chloro – flow – carbon ) है . जो कंडीशनर , रेफ्रीजरेटर आदि से निकलती है । ओजोन परत में क्षरण CFC में उपस्थित सक्रिय क्लोरीन ( C1 ) कारण होती है ।
  • ओजोन परत की मोटाई नापने में डाबसन इकाई का प्रयोग किया जाता है । 
  •  
  • इस मंडल में ऊँचाई के साथ तापमान बढ़ता जाता है ; प्रति एक किमी की ऊंचाई पर तापमान में 5 ° C की वृद्धि होती है ।

4. आयन मंडल ( lonosphere )-

  • इसकी ऊँचाई 60 किमी से 640 किमी तक होती है । यह भाग कम वायुदाब तथा पराबैंगनी किरणों द्वारा आयनीकृत होता रहता है
  • इस मंडल में सबसे नीचे स्थित D – layer से long radio waves एवं E1,E2 , और F1 , F2 परतों से short radio wave परावर्तित होती है । जिसके फलस्वरूप पृथ्वी पर रेडियो . टेलीविजन , टेलिफोन एवं रडार आदि की सुविधा प्राप्त होती है ।
  • संचार उपग्रह इसी मंडल में अवस्थित होते है ।

5. बाह्य मंडल ( Exosphere ) –

  • 640 किमी से ऊपर के भाग को बाह्यमंडल कहा जाता है । 
  • इसकी कोई ऊपरी सीमा निर्धारित नहीं है ।
  • इस मंडल में हाइड्रोजन एवं हीलियम गैस की प्रधानता होती है ।

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सूर्यातप ( Insolation ) 

  • सूर्य से पृथ्वी तक पहुँचने वाले सौर विकिरण ऊर्जा को सूर्यातप कहते हैं । यह ऊर्जा लघु तरंगों के रूप में सूर्य से पृथ्वी पर पहुँचती है ।
  • वायुमंडल की बाहरी सीमा पर सूर्य से प्रतिमिनट प्रति वर्ग सेमी ० पर 1.94 कैलोरी उष्मा प्राप्त होती है । 
  • किसी भी सतह को प्राप्त होने वाली सूर्यातप की मात्रा एवं उसी सतह से परावर्तित की जाने वाली सूर्यातप की मात्रा के बीच का अनुपात एल्बिडो कहलाता है । 
  •  

वायुमंडल गर्म तथा ठण्डा निम्न विधियों से होता है:-

1. विकिरण ( Radiation ) : किसी पदार्थ को ऊष्मा तरंगों के संचार द्वारा सीधे गर्म होने को विकिरण कहते हैं । उदाहरणतया , सूर्य से प्राप्त होने वाली किरणों से पृथ्वी तथा उसका वायुमंडल गर्म होते हैं । यही एकमात्र ऐसी प्रक्रिया है , जिससे ऊष्मा बिना किसी माध्यम के , शून्य से होकर भी यात्रा कर सकती है । सूर्य से आने वाली किरणें लघु तरंगों वाली होती हैं , जो वायुमंडल को बिना अधिक गर्म किए ही उसे पार करके पृथ्वी तक पहुँच जाती हैं ।पृथ्वी पर पहुँची हुई किरणों का बहुत – सा भाग पुनः वायुमंडल में चला जाता है । इसे भौमिक विकिरण ( Terrestrial को   Radiation ) कहते हैं |

2. संचालन ( Conduction ) : जब असमान ताप वाली दो वस्तुएँ एक – दूसरे के सम्पर्क में होती है, तो अधिक तापमान वाली वस्तु से कम तापमान वाली वस्तु की ओर ऊष्मा प्रवाहित होती है ऊष्मा का यह प्रवाह तब तक चलता रहता है जब तक दोनों वस्तुओं का तापमान एक जैसा न हो जाए वायु ऊष्मा की कुचालक है , अतः संचालन प्रक्रिया वायूमंडल को गर्म करने के लिए सबसे कम महत्वपूर्ण है । इससे वायुमंडल की केवल निचली परतें ही गर्म होती हैं ।

3. संवहन ( Convection )-  किसी गैसीय अथवा तरल पदार्थ के एक भाग से दूसरे भाग की ओर उसके अणुओं द्वारा ऊष्मा के संचार को संवहन कहते है । यह संचार गैसीय तथा तरल पदार्थों में इसलिए होता है । क्योंकि उनके अणुओं के बीच का सम्बन्ध कमजोर होता है । यह प्रक्रिया ठोस पदार्थों में नहीं होती है । जब वायुमंडल की निचली परत भौमिक विकिरण अथवा संचालन से गर्म हो जाती है तो उसकी वायु फैलती है जिससे उसका धनत्व कम हो जाता है । धनत्व कम होने से वह हल्की हो जाता है और ऊपर को उठती है । इस प्रकार वह वायु निचली परतों की ऊष्मा को ऊपर ले जाती है । ऊपर की ठंडी वायु उसका स्थान लेने के लिए नीचे आती है और कुछ देर बाद वह भी गर्म हो जाती है । इस प्रकार संवहन प्रक्रिया द्वारा वायुमंडल क्रमशः नीचे से ऊपर गर्म होता रहता है । वायुमडल गर्म होने में यह मुख्य भूमिका निभाता है

4. अभिवहन ( Advection ) : इस प्रक्रिया में ऊष्मा का क्षैतिज दिशा में स्थानान्तरण होता है । गर्म वायु राशियाँ जब ठडे इलाको में जाती है , तो उन्हें गर्म कर देती हैं । इससे ऊष्मा का संचार निम्न अक्षाशीय क्षेत्रों से उच्च अक्षाशीय क्षेत्रों तक भी होता है । वायु द्वारा संचालित समुद्री धाराएं भी उष्ण कटिबन्धों से धुवीय क्षेत्रों में ऊष्मा का संचार करती है ।

समताप रेखा :

वह कल्पित रेखा है . जो समान तापमान वाले स्थानों को मिलाती है । समताप रेखाओं तथा तापमान के वितरण के निम्न लक्षण है:-

    1. समताप रेखाएँ पूर्व पश्चिम दिशा में अक्षांशों के लगभग समानान्तर खीची जाती हैं । इसका कारण यह है कि एक ही अक्षाश पर स्थित सभी स्थानों पर एक ही मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है और तापमान भी लगभग एक जैसा ही होता है ।
    2. जल और स्थान पर तापमान भिन्न होते हैं अतः तटों पर समताप रेखाएं अकस्मात् मुड जाती हैं । 
    3. दक्षिणी गोलार्द्ध में जल भाग अधिक है और वहाँ पर तापमान संबंधी विषमताएँ कम पाई जाती है । इसकी विपरीत उत्तरी गोलार्द्ध में जल भाग कम है और वहाँ पर तापमान सम्बन्धी विषमताएँ अधिक पाई जाती हैं । इस कारण दक्षिणी गोलार्द्ध में समताप रेखाओं में मोड़ कम आते हैं और उनकी पूर्व पश्चिम दिशा अधिक स्पष्ट है ।
    4. समताप रेखाओं के बीच की दूरी से ताप – प्रवणता ( तापमान के बदलने की दर ) का अनुमान लगाया जा सकता है । यदि समताप रेखाएँ एक दूसरे के निकट होती हैं , तो ताप प्रवणता अधिक होती हैं । इसके विपरीत , यदि समताप रेखाएं एक दूसरे से दूर होती है तो ताप प्रवणता कम होती है । 
    5. उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में तापमान अधिक होता है अत: अधिक मूल्य वाली समताप रेखाएँ उष्ण कटिबन्ध में होती हैं । धुवीय प्रदेशों में तापमान बहुत ही कम होता है अतः वहाँ पर कम मूल्य की समताप रेखाएँ होती हैं । 
  • संसार के अधिकाश क्षेत्रों के लिए जनवरी एवं जुलाई के महीनों में न्यूनतम अथवा अधिकतम तापमान पाया जाता है । यही कारण है कि तापमान विश्लेषण के लिए बहुधा इन्हीं दो महीनों को चुना जाता है ।
  • तापान्तर ( Range of Temperature ) :अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान के अन्तर को तापान्तर कहते हैं  । यह दो प्रकार का होता है
    1.  दैनिक तापान्तर : किसी स्थान पर किसी एक दिन के अधिकतम तथा न्यूनतम तापमान के अन्तर को वहाँ का दैनिक तापान्तर कहते हैं । ताप में आए इस अंतर को ताप परिसर कहते हैं ।
    2. वार्षिक तापान्तर : जिस प्रकार दिन तथा रात के तापमान में अन्तर होता है , उसी प्रकार ग्रीष्म तथा शीत ऋतु के तापमान में भी अन्तर होता है । अतः किसी स्थान के सबसे गर्म तथा सबसे ठंडे महीने के मध्यमान तापमान के अन्तर को वार्षिक तापान्तर कहते हैं । विश्व में सबसे अधिक वार्षिक तापान्तर साईबेरिया में स्थित बरखोयाक नामक स्थान का है|
    • किसी भी स्थान विशेष के औसत तापक्रम तथा उसके अक्षाश के औसत तापक्रम के अन्तर को तापीय विसंगति कहते हैं ।

 

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