दिल्ली हाईकोर्ट
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उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि माता-पिता के बीच कस्टडी की लड़ाई में बच्चों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है। अदालत ने उक्त टिप्पणी पारिवारिक अदालत के उस आदेश को बरकरार रखते हुए की जिसमें माता-पिता दोनों को नाबालिग लड़के की संयुक्त कस्टडी के साथ-साथ पिता को मुलाकात का अधिकार भी दिया है।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि पारिवारिक अदालत ने यह मानने के लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाया है कि माता-पिता दोनों प्राकृतिक अभिभावक हैं और दोनों के मन और आचरण में बच्चे का हित और कल्याण होता है।
उच्च न्यायालय ने पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ मां द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया जिसने नाबालिग लड़के की संयुक्त कस्टडी माता-पिता दोनों को दी थी। पारिवारिक अदालत ने पिता को मुलाकात का अधिकार भी दिया था, जबकि नाबालिग की कस्टडी 18 साल की होने तक मां को दी गई थी। पारिवारिक ध्रुवीकरण के कारण बच्चा सब रिश्ते को खो देता है
पीठ ने कहा, अभिरक्षा की लड़ाई में सबसे अधिक नुकसान बच्चे को होता है क्योंकि भले ही माता-पिता में से कोई भी जीत जाए, पारिवारिक ध्रुवीकरण के कारण बच्चा सब रिश्ते खो देता है। केवल बच्चा पैदा करने से कोई माता-पिता नहीं बन जाता, बल्कि जो माता-पिता के ऐसे झगड़ों में बच्चे को टूटने से बचाता है, वही आदर्श माता-पिता बनने के सबसे करीब होता है। ध्यान बच्चे के भविष्य पर होना चाहिए न कि माता-पिता के अतीत पर।
इस जोड़े की शादी 11 मई 2006 को हुई और उनके बेटे का जन्म 2 मई 2007 को हुआ। जोड़े के बीच वैवाहिक विवाद पैदा हो गए और वे 2009 में अलग हो गए। हालांकि, बच्चे की कस्टडी मां के पास ही रही। पिता ने संरक्षकता याचिका दायर कर दावा किया कि मां बच्चे के हितों की रक्षा करने के लिए उपयुक्त नहीं है।
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