Notes in Hindi - Indian Constitution - Indian Judicial System - न्यायपालिका

Notes in Hindi - Indian judicial system

Notes in Hindi – Indian Constitution – Indian Judicial System – न्यायपालिका

Notes in Hindi – Indian Constitution – Indian Judicial System – न्यायपालिका

Indian Constitution in Hindi

Indian Judicial System – न्यायपालिका

                                                                                                                                      

सर्वोच्य न्यायालय 

(Supreme Court)

Notes in Hindi – Indian Constitution – Indian Judicial System – न्यायपालिका

  • भारत की न्यायिक व्यवस्था इकहरी और एकीकृत है , जिसके सर्वोच्च शिखर पर भारत का उच्चतम न्यायालय है ।
  • उच्चतम न्यायालय दिल्ली में स्थित है ।
  • उच्चतम न्यायालय की स्थापना , गठन , अधिकारिता , शक्तियों के विनियमन से संबंधित विधि निर्माण की शक्ति भारतीय संसद को प्राप्त है ।
  • उच्चतम न्यायालय का गठन सबंधी प्रावधान ( अनुच्छेद 124 ) में दिया गया है ।
  • उच्चतम न्यायालय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा 30 अन्य न्यायाधीश होते हैं ।

नोट :- उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश सहित कुल 8 न्यायाधीशों की व्यवस्था संविधान में मूलतः की गई थी । बाद में काम के बढ़ते दबाव को देखते हुए 1956 ई ० में उच्चतम न्यायालय नियम में संशोधन कर न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाकर ।। की गई । तदुपरान्त 1960 ई ० में यह संख्या पुन बढ़ाकर 14, 1978 में 18 तथा 1986 में 26  हो गयी । केन्द्र सरकार ने फरवरी 2008 को उच्चतम न्यायालय में मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त न्यायाधीशों की संख्या 25 से बढ़ाकर 30 करने का फैसला किया ।

  • इन न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है । 
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गयी है । एक बार नियुक्ति होने के बाद इनके अवकाश ग्रहण करने की आयु सीमा 65 वर्ष है ।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश साबित कदाचार तथा असमर्थता के आधार पर संसद के प्रत्येक सदन में विशेष बहुमत से पारित समावेदन के आधार पर राष्ट्रपति के द्वारा हटाये जा सकते हैं ।
  • उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को ₹280,000 प्रति माह तथा अन्य न्यायाधीशों को ₹250,000प्रतिमाह वेतन मिलता है ।

उच्चतम न्यायालय न्यायाधीश के लिए योग्यताएं:-

( i ) वह भारत का नागरिक हो ।

( ii ) वह किसी उच्च न्यायालय अथवा दो या दो से अधिक न्यायालयों में लगातार कम से कम 5 वर्षों तक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुका हो । या, किसी उच्च न्यायालय या न्यायालयों में लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रह चुका हो । या , राष्ट्रपति की दृष्टि में कानून का उच्च कोटि का ज्ञाता हो ।

  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश अवकाश प्राप्त करने के बाद भारत में किसी भी न्यायालय या किसी भी अधिकारी के सामने वकालत नहीं कर सकते हैं ।
  • उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को पद एवं गोपनीयता की शपथ राष्ट्रपति दिलाता है|
  • मुख्य न्यायाधीश , राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर , दिल्ली के अतिरिक्त अन्य किसी स्थान पर सर्वोच्च न्यायालय की बैठकें बुला सकता है । ब तक हैदराबाद और श्रीनगर में इस प्रकार की बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं ।

उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार :-

1. प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार : यह निम्न मामलों में प्राप्त है:-

( i ) भारत संघ तथा एक या एक से अधिक राज्यों के मध्य उत्पन्न विवादों में ।

( ii ) भारत संघ तथा कोई एक राज्य या अनेक राज्यों और एक या एक से अधिक राज्यों के बीच विवादों में ।

( iii ) दो या दो से अधिक राज्यों के बीच ऐसे विवाद में , जिसमें उनके वैधानिक अधिकारों का प्रश्न निहित है । 

प्रारम्भिक क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय उसी विवाद को निर्णय के लिए स्वीकार करेगा , जिसमें किसी तथ्य या विधि का प्रश्न शामिल है ।

2. अपीलीय क्षेत्राधिकार :- 

  • देश का सबसे बड़ा अपीलीय न्यायालय उच्चतम न्यायालय है ।
  • इसे भारत के सभी उच्च न्यायालयों के निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनने का अधिकार है ।
  • इसके अन्तर्गत तीन प्रकार के प्रकरण आते हैं- ( i ) सांविधानिक , ( ii ) दीवानी और ( iii ) फोजदारी ।

3. परामर्शदात्री क्षेत्राधिकार :-

  • राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह सार्वजनिक महत्व के विवादों पर उच्चतम न्यायालय का परामर्श माँग सकता है । ( अनुच्छेद 143 ) |
  • न्यायालय के परामर्श को स्वीकार या अस्वीकार करना राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है ।

4. पुनर्विचार संबंधी क्षेत्राधिकार :

  • संविधान के अनुच्छेद 137 के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय को यह अधिकार प्राप्त है कि वह स्वयं द्वारा दिए गए आदेश या निर्णय पर पुनर्विचार कर सके  तथा यदि उचित समझें तो उसमें आवश्यक परिवर्तन कर सकता है ।

5 . अभिलेख न्यायालयः

  • संविधान का अनुच्छेद 129 उच्चतम न्यायालय को अभिलेख न्यायालय का स्थान प्रदान करता है । इसका आशय यह है कि इस न्यायालय के निर्णय सब जगह साक्षी रूप में स्वीकार किए जाएंगे और इसकी प्रामाणिकता के विषय में प्रश्न नहीं किया जाएगा

6. मौलिक अधिकारों का रक्षक :

  • भारत का उच्चतम न्यायालय नागरिकों के मौलिक अधिकार का रक्षक है । अनुच्छेद 32 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष रूप से उत्तरदायी ठहराता है कि वह मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए आवश्यक कार्रवाई करें ।
  • न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए बन्दी प्रत्यक्षीकरण , परमादेश , प्रतिषेध , अधिकार पृच्छा – लेख  और उत्प्रेषण के लेख जारी कर सकता है ।

उच्च न्यायालय (High Court )

  • संविधान के अनुसार प्रत्येक राज्य के लिए एक उच्च न्यायालय होगा ( अनुच्छेद 214 ) , लेकिन संसद विधि द्वारा दो या दो से अधिक राज्यों और किसी संघ राज्य क्षेत्र के लिए एक ही उच्च न्यायालय स्थापित कर सकती है ( अनुच्छेद 231 )
  • वर्तमान में पंजाब एवं हरियाणा , असम , नगालैंड , मेघालय , मणिपुर , त्रिपुरा , मिजोरम तथा अरुणाचल प्रदेश , महाराष्ट्र , गोवा , दादर और नागर हवेली और दमण तथा दीव और प ० बंगाल , अंडमान निकोबार द्वीप समूह आदि के लिए एक ही उच्च न्यायालय है । 
  • वर्तमान में भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं ।
  • केन्द्र शासित प्रदेशों से केवल दिल्ली में उच्च न्यायालय है ।
  • प्रत्येक उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य न्याचाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से मिलाकर  किया जाता है । इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के  द्वारा होती है । भिन्न – भिन्न उच्च न्यायालयों में  न्यायाधीशों की संख्या अलग – अलग होती है ।

उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए योग्यताएँ :-

  1. भारत का नागरिक हो ।
  2. कम – से कम दस वर्ष तक न्यायिक पद धारण कर चुका हो अथवा , किसी उच्च न्यायालय में या एक से अधिक उच्च न्यायालयों में लगातार 10 वर्षों तक अधिवक्ता रहा हो ।
  3. उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उस राज्य , जिसमें उच्च न्यायालय स्थित है , का राज्यपाल  उसके पद की शपथ दिलाता है ।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का अवकाश ग्रहण करने की अधिकतम उम्र सीमा 62 वर्ष से बढ़ाकर 65 वर्ष कर दिया गया है ।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अपने पद से , राष्ट्रपति को संबोधित कर , कभी भी त्याग पत्र दे सकता है ।
  • उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को उसी प्रकार अपदस्थ किया जा सकता है , जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश पद मुक्त किया जाता है ।
  • जिस व्यक्ति ने उच्च न्यायालय में स्थायी न्यायाधीश के रूप में कार्य किया है , वह उस न्यायालय में वकालत नहीं कर सकता । किन्तु वह किसी दूसरे उच्च न्यायालय में अथवा उच्चतम न्यायालय में वकालत कर सकता है । 
  • राष्ट्रपति आवश्यकतानुसार किसी भी उच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि कर सकता है अथवा अतिरिक्त न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सकता है ।
  • राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को भी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है । 
  • उच्च न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय होता है । उसके निर्णय आधिकारिक माने जाते है तथा उनके आधार पर न्यायालय अपना निर्णय देते हैं । 
  • भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर राष्ट्रपति उच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश का स्थानांतरण किसी दूसरे उच्च न्यायालय में कर सकता है ।

उच्च न्यायालय का क्षेत्राधिकार:-

1. प्रारंभिक क्षेत्राधिकार :

  • प्रत्येक उच्च न्यायालय को नौकाधिकरण , इच्छा – पत्र , तलाक , विवाह , कम्पनी न्यायालय की अवमानना तथा कुछ राजस्व संबंधी प्रकरणों नागरिकों के मौलिक अधिकारों के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक निर्देश विशेषकर बंदी प्रत्यक्षीकरण , परमादेश , निषेध , उत्प्रेषण तथा अधिकार पृच्छा के लेख जारी करने के अधिकार प्राप्त है ।

2. अपीलीय क्षेत्राधिकार :

  • फौजदारी मामलों में अगर सत्र न्यायाधीश ने मृत्युदंड दिया हो , तो उच्च न्यायालय में उसके विरुद्ध अपील हो सकती है ।
  •  दीवानी मामलों में उच्च न्यायालय में उन सब परीक्षक मामलों की अपील हो सकती है , जो पाँच लाख रुपए या उससे अधिक संपत्ति से संवद्ध हो ।
  • उच्च न्यायालय पेटेंट और डिजाइन , उत्तराधिकार , भूमि प्राप्ति , दिवालियापन और संरक्षकता आदि मामलों में भी अपील सुनता है ।

3 . उच्च न्यायालय में मुकदमों का हस्तांतरण :

  • यदि किसी उच्च न्यायालय को ऐसा लगे कि जो अभियोग अधीनस्थ न्यायालय में विचाराधीन है , वह विधि के किसी सारगर्भित प्रश्न से सबद्ध है तो वह उसे अपने यहाँ हस्तांतरित कर , या तो उसका निपटार स्वयं कर देता है या विधि से संबद्ध प्रश्न को निपटाकर अधीनस्थ न्यायालय को निर्णय के लिए यापस भेज देता है ।

4. प्रशासकीय अधिकार :

  • उच्च न्यायालयों को अपने अधीनस्थ न्यायालयों में नियुक्त , पदावनित , पदोन्नति तथा छुट्टियों के संबंध में नियम बनाने का अधिकार है ।

नोट : उच्च न्यायालय राज्य में अपील का सर्वोच्च न्यायालय नहीं है । राज्य सूची से संबद्ध विषयों में भी उच्च न्यायालय के निर्णयों के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील हो सकती है । 

लोक अदालत

  • लोक अदालत कानूनी विवादों के मैत्रीपूर्ण  समझौते के लिए वैधानिक मंच है ।
  • विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम 1987 ( संशोधन 2002 ) द्वारा लोक उपयोगी सेवाओं के विवादों के संबंध में मुकदमेबाजी पूर्व सुलह और निर्धारण के लिए स्थायी लोक अदालतो की स्थापना के लिए प्रावधान करता है ।
  • ऐसे फौजदारी विवादों को छोड़कर जिनमें समझौता नहीं किया जा सकता . दीवानी ,फौजदारी , राजस्व अदालतों में  लंबित सभी कानूनी विवाद मैत्रीपूर्ण समझौते के लिए लोक अदालत में लाए जा सकते हैं ।
  • कानूनी विवादों को लोक अदालतें मुकदमा दायर होने से पूर्व भी अपने यहाँ स्वीकार कर सकती हीवानी न्यायालय के समान ही दोनों पक्षों है । लोक अदालत के निर्णय अन्य किसी पर लागू होते हैं । यह निर्णय अंतिम होते हैं । लोक अदालतों द्वारा दिए गए निर्णयों के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती । देश के लगभग सभी जिलों में स्थायी तथा सतत लोक अदालतें स्थापित की गई हैं । 

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