Nano Technology in Hindi

Nano Technology in Hindi

Nano Technology in Hindi

 नैनो-प्रौद्योगिकी Nano-technology

 भारत में नैनो प्रौद्योगिकी का विकास एवं नैनो मिशन 

  • सन् 2001 में भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अन्तर्गत “NSTI” (Nano Science & Tech. initiative) कार्यक्रम प्रारंभ किया गया।
  • सन् 2007 – प्रो० CNR राव की अध्यक्षता में नैनो मिशन प्रारंभ किया गया। नैनो मिशन अम्ब्रेला- प्रोजेक्ट के रूप में प्रारंभ किया गया तथा इस मिशन के उद्‌देश्य इस प्रकार है-
    • भारत में नैनो प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा देना
    • नैनो प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने हेतु आधारभूत संरचना का विकास।
    • IIT और IISc जैसे संस्थानों में छात्रवृत्ति कार्यक्रम।
    • मानव संसाधन विकास।
    • अंतर्राष्ट्रीय सह‌योग से नैनो प्रौद्योगिकी को बढ़ावा।
  • नैनो मिशन (2007) के लिए भारत सरकार ने 11 वीं पंचवर्षीय योजना के तहत् 1000 करोड़ र उपलब्ध करवाए ।
  • नैनो मिशन के लिए “विज्ञान एवं प्रौधोगिकी विभाग’ को  नोडल एजेंसी बनाया गया।
  • नैनो मिशन का दूसरा चरण 2014 में प्रारंभ हुआ तथा इस चरण में 12वीं पंचवर्षीय योजना के तहत भारत सरकार ने 650 करोड़ र उपलब्य करवाए ।

Nano Technology in Hindi - नैनो प्रौद्योगिकी से संबंधित महत्वपूर्ण उत्पाद (भारत में निर्मित

नैनो फिल्टर्स → BHU / बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में वैज्ञानिकों C.N.T. से ऐसा फिल्टर तैयार किया है, जो जल एवं पेट्रोलियम पदार्थों को फिल्टर करने में प्रयुक्त।

टायफॉइड डिटेक्शन किट →  IISc. / Indian institute of Science, बेंगलुरु में प्रो. A.K. सूद ने टायफाइड का पता लगाने में नैनो सेन्सर्स का विकास किया है।

C.N.T. से विद्युत उत्पादन →  प्रो. A.K सूद ने देखा कि जब C.N.T. से तरल / Liquid का प्रवाह होता है तो ऐसे में विद्युत धारा भी उत्पन्न होती है इस सिद्धांत के आधार पर कृत्रिम पेस मेकर का निर्माण C.N.T. द्वारा किया जा सकता है।

सूक्ष्म  तरंगों/microwave से C.N.T. उत्पादन →  IIT कानपुर में सूक्ष्म  तरंगों की सहायता से C.N.T. का उत्पादन किया गया है। ये C.N.T. अत्याधिक उच्च तापमान लगभग 1200 डिग्री पर भी कार्य करती हैं।

नैनो माइसेल्स / Nano micells  → ये TiO₂ (टाइटेनियम डाई ऑक्साइड)  से बने नैनो कण, जिनका प्रयोग कैंसर के उपचार में।

 

  • अप्रैल 2021 में राजस्थान के डॉ. रालिया ने U.S.A. से पेटेण्ट प्राप्त किया है जो इसी प्रकार के CaCo3 के नैनो कण हैं, जिनका उपयोग कैंसर के उपचार में।
  • अब तक की सबसे पुरानी नैनो संरचनाएं भारत में तमिलनाडू के पुरातात्विक स्थल “कीलादि” से प्राप्त हुई।
  • खनन में प्राप्त हुई वस्तुओं पर कार्बन से बनी परतों के रूप में मिली इन नैनो संरचनाओं को “यूनिक ब्लैक कोटिंग्स’ (Unique Black Coating ) भी कहा गया है।

नैनो प्रौद्योगिकी के विपरीत प्रभाव ‎‫

  1. किम एरिक ड्रेक्सलर ने नैनो मशीनों एवं नैनोबोट्स की सेल्फ-एसेंबलिंग क्षमताओं पर संदेह जताया तथा ये कहा कि ये नैनो मशीनें भविष्य में मानव नियंत्रण से बाहर हो कर मानव जाति के विरुद्ध भी कार्य कर सकती हैं तथा इसे ड्रेक्सलर ने “gray goo problem” कहा।
  2. अत्याधिक सूक्ष्म नैनो संरचनाओं का दुरुपयोग आतंकवादियों द्वारा भी किया जा सकता है।
  3. जब अत्यन्त छोटे नैनो कण पर्यावरण में पहुँचते हैं तो ये जीवों के वृद्धि एवं विकास को भी प्रभावित करते हैं। जैसे : कॉपर ऑक्साईड के नैनो कण पौधों में पुष्प/flower व फलों  के विकास को रोकते हैं।
  1. फूड प्रोसेसिंग, औद्योगिक इकाइयों से नैनो कण जब खाद्य-श्रृंखलाओं/ food-chains में प्रवेश करते हैं तो कोशिकाओं व जीवों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं।