Notes in Hindi for Competitive Exams -Amendments in Constitution & Funds of India 16 -20
Notes in Hindi -Amendments in the Constitution & Funds of India
Notes in Hindi – Indian Constitution-Amendments in the constitution-Funds of India
Notes in Hindi – Indian Constitution-Amendments in the constitution-Funds of India
Indian Constitution in Hindi
संविधान में संशोधन (Amendments in the Constitution)और
भारत की निधियाँ (Funds of India)
संविधान में संशोधन (Amendments in the Constitution)
Notes i Hindi – Indian Constitution-Amendments in the constitution-Funds of India
- संविधान के अनुच्छेद 368 में संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है । इसमें संशोधन की तीन विधियों को अपनाया गया है –
( i ) साधारण विधि द्वारा संशोधन , ( i ) संसद के विशेष बहुमत द्वारा , ( iii ) संसद के विशेष बहुमत और राज्य के विधान मंडलों की स्वीकृति से संशोधन ।
( 1 ) साधारण विधि द्वारा : संसद के साधारण बहुमत द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने पर कानून बन जाता है । इसके अन्तर्गत राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति मिलने पर निम्न संशोधन किए जा सकते हैं-
( i ) नए राज्यों का निर्माण , ( ii ) राज्य क्षेत्र , सीमा और नाम में परिवर्तन , ( iii ) संविधान की नागरिकता संबंधी अनुसूचित क्षेत्रों और जनजातियों की प्रशासन संबंधी तथा केन्द्र द्वारा प्रशासित क्षेत्रों की प्रशासन संबंधी व्यवस्थाएँ ।
(2) विशेष बहुमत द्वारा संशोधन : यदि संसद के प्रत्येक सदन द्वारा कुल सदस्यों का बहुमत तथा उपस्थित और मतदान में भाग लेनेवाले सदस्यों के 2/3 मतों से विधेयक पारित हो जाए तो राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलते ही वह संशोधन संविधान का अंग बन जाता है । न्यायपालिका तथा राज्यों के अधिकारों तथा शक्तियों जैसी कुछ विशिष्ट बातों को छोड़कर संविधान की अन्य सभी व्यवस्थाओं में इसी प्रक्रिया के द्वारा संशोधन किया जाता है ।
(3) संसद के विशेष बहुमत एवं राज्य विधान मंडलों की स्वीकृति शोधन : संविधान के कुछ अनुच्छेदों में संशोधन के लिए विधेयक को संसद के दोनों सदनों के विशेष बहुमत तथा राज्यों के कुल विधान मंडलों में से आधे द्वारा स्वीकृति आवश्यक है । इसके द्वारा किए जाने वाले संशोधन के प्रमुख विषय हैं-
( i ) राष्ट्रपति का निर्वाचन ( अनुच्छेद 54 ) ( ii ) राष्ट्रपति निर्वाचन की कार्य पद्धति ( अनुच्छेद 55 ), ( iii ) संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार , ( iv ) राज्यों की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार , ( v ) केन्द्र शासित क्षेत्रों के लिए उच्च न्यायालय , ( vi ) संघीय न्यायपालिका , ( vi ) राज्यों के उच्च न्यायालय , ( viii ) संघ एवं राज्यों में विधायी संबंध , ( ix ) सातवीं अनुसूची का कोई विषय , ( x ) संसद में राज्यों का प्रतिनिधित्व , ( xi ) संविधान संशोधन की प्रक्रिया से संबंधित उपबन्ध ।
भारत की निधियाँ (Funds of India)
भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) – अनुच्छेद 266 (1 )
- भारत की संचित निधि पर भारित व्यय निम्न है:-
- ( i ) राष्ट्रपति का वेतन एवं भत्ता और अन्य व्यय के सभापति ,
- ( ii ) राज्य सभा सभापति और उपसभापति तथा लोक सभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के वेतन एवं भत्ते ,
- ( iii ) सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन , भता तथा पेंशन ,
- ( iv ) भारत के नियत्रंक – महालेखा परीक्षक का वेतन , भत्ता तथा पेंशन ,
- ( v ) ऐसा ऋण – भार , जिनका दायित्व भारत सरकार पर है ,
- ( vi ) भारत सरकार पर किसी न्यायालय द्वारा दी गयी डिक्री या पंचाट ,
- ( vii ) कोई अन्य व्यय जो संविधान द्वारा या संसद विधि द्वारा इस प्रकार भारित घोषित करें ।
भारत की आकस्मिकता निधि (Contingency Fund of India) – अनुच्छेद 267
- संविधान का ( अनुच्छेद 267 ) संसद और राज्य विधान मंडल को , यथास्थिति , भारत या राज्य की आकस्मिकता निधि सर्जित करने की शक्ति देता है ।
- यह निधि , 1950 द्वारा गठित की गई है । यह निधि कार्यपालिका के व्यवनाधीन (Under Practice) है ।
- जब तक विधान मंडल अनुपूरक , अतिरिक्त या अधिक अनुदान द्वारा ऐसे व्यय को प्राधिकृत नहीं करता है , तब तक समय – समय पर अनवेक्षित व्यय (Unexplained Expenditure) करने के प्रयोजन के लिए कार्यपालिका इस निधियों से अग्रिम धन दे सकती है ।
- इस निधि में कितनी रकम हो यह समुचित विधान मंडल विनियमित करेगा ।
भारत का महान्यायवादी (Attorney-General of India) – अनुच्छेद 76
- भारत का महान्यायवादी सर्वप्रथम भारत सरकार का विधि अधिकारी होता है ।
- * भारत का महान्यायवादी न तो संसद का सदस्य होता है और न ही मंत्रिमंडल का सदस्य होता है । लेकिन वह किसी भी सदन में अथवा उनकी समितियों में बोल सकता है , उसे मत देने का अधिकार नहीं है । ( अनुच्छेद 88 )
- महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है तथा वह उसके प्रसाद पर्यन्त पद धारण करता है ।
- महान्यायवादी बनने के लिए वही अर्हताएँ होनी चाहिए जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश बनने के लिए होती हैं ।
- महान्यायवादी को भारत के राज्य क्षेत्र के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार है ।
भारत का नियत्रंक एवं महालेखा परीक्षक (Controller and Auditor General of India) – अनुच्छेद 148 से 151
- नियंत्रक महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है । किन्तु उसे पद से संसद के दोनों सदनों के समावेदन पर ही हटाया जा सकेगा और उसके आधार (i )साबित कदाचार या ( ii ) असमर्थता हो सकेंगे ।
- इसकी पदावधि पद ग्रहण करने की तिथि से 6 वर्ष तक होगी , लेकिन यदि इससे पूर्व 65 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेता है तो वह अवकाश ग्रहण कर लेता है ।
- यह सेवा निवृत्ति के पश्चात् भारत सरकार के अधीन कोई पद धारण नहीं कर सकता ।
- नियंत्रक महालेखा परीक्षक सार्वजनिक धन का संरक्षक होता है ।
- भारत तथा प्रत्येक राज्य तथा प्रत्येक संप राज्य क्षेत्र की सचित निधि से किए गए सभी व्यय विधि के अधीन ही हुए हैं यह इस बात की संपरीक्षा करता है ।