Notes in Hindi for Competitive Exams-Geography – भूगोल – भाग 3-4
Notes in Hindi-Geography-पृथ्वी और उसका सौर्थिक संबंध
Geography in Hindi
भूगोल (Geography)
पृथ्वी और उसका सौर्थिक संबंध
- प्रकाश चक्र ( Circle of Illumination ) : वैसी काल्पनिक रेखा जो पृथ्वी के प्रकाशित और अप्रकाशित भाग को बाँटती है ।
- पृथ्वी के परिभ्रमण की दिशा पश्चिम से पूर्व है । जिस कक्षा में पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है . वह दीर्घवृत्तीय है । अतः 3 जनवरी को सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी अपेक्षाकृत कम हो जाती है , जिसे उपसौरिक ( Perithelion ) की स्थिति कहते हैं । यह दूरी 9.15 करोड़ मील है । इसके विपरीत उत्तरायण की स्थिति में 4 जुलाई को पृथ्वी सूर्य से कुछ दूर चली जाती है , इसको अपसीरिक (Aphelion ) कहते हैं । यह दूरी 9.45 करोड़ मील होती है ।
- एपसाइड रेखा : उपसारिक एवं अपसीरिक को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा सूर्य के केन्द्र से गुजरती है । इसे एपसाइड रेखा कहते हैं ।
- अक्षांश ( Latitude ) : यह ग्लोब पर पश्चिम से पूरब की ओर खीची गयी काल्पनिक रेखा है जिसे अंश में प्रदर्शित किया जाता है । वास्तव में अक्षांश वह कोण है , जो विषुवत रेखा तथा किसी अन्य स्थान के बीच पृथ्वी के केन्द्र पर बनती है । विषुवत रेखा को शून्य अंश की स्थिति में माना जाता है । यहाँ से उत्तर की ओर बढ़ने वाली कोणिक दूरी को उत्तरी अक्षांश तथा दक्षिण में बढ़ने वाली दूरी को दक्षिणी अक्षांश कहते हैं । इसकी अधिकतम सीमा पर ध्रुव है , जिन्हें 90 ° उत्तरी या दक्षिणी अक्षांश कहा जाता है ।
- सभी अक्षांश रेखाएं समानान्तर होती हैं । वे दो अक्षांशों के बीच की दूरी ( क्षेत्रफल ) जोन ( zone ) के नाम से जानी जाती है । दो अक्षांशों के मध्य की दूरी 111 किमी होती है ।
- भूमध्य रेखा के उत्तर में 23 .5 डिग्री अक्षांश को कर्क रेखा माना गया है , जबकि दक्षिण में 23 .5 डिग्री अक्षांश को मकर रेखा माना गया है ।
- देशान्तर ( Longitude ) : यह ग्लोव पर उत्तर से दक्षिण की ओर खींची जाने वाली काल्पनिक रेखा है । ये रेखाएँ समानान्तर नहीं होती हैं । ये रेखाएँ उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव पर एक बिन्दु पर मिल जाती हैं । ध्रुवों से विषुवत् रेखा की ओर बढ़ने पर देशान्तरों के बीच की दूरी बढ़ती जाती है तथा विषुवत् रेखा पर इसके बीच की दूरी अधिकतम ( 11.32 किमी ) है ।
- ग्रीनविच वेधशाला से गुजरने वाली रेखा को 0 ° देशान्तर माना जाता है । इसकी बांयी ओर की रेखाएं पश्चिमी देशान्तर और दाहिनी ओर की रेखाएँ पूर्वी देशान्तर कहलाती है ।
- देशान्तर के आधार पर ही किसी स्थान का समय ज्ञात किया जाता है । दो देशान्तर रेखाओं के बीच की दूरी गोरे ( Gore ) नाम से जानी जाती है ।
- शून्य अंश अक्षांश एवं शून्य अंश देशान्तरअटलांटिक महासागर में काटती है ।
- संक्रांति ( Solstice ) : सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन की सीमा को संक्रांति कहते हैं ।
- कर्क संक्रांति : 21 जून को सूर्य कर्क रेखा ( 23.5 Degree N ) पर लम्बवत् होता है, इसे कर्क संक्रांति कहते हैं । इस दिन उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन होता है ।
- मकर संक्रांति : 22 दिसम्बर को सूर्य मकर रेखा पर लम्बवत् होता है । इसे मकर संक्रांति कहते हैं । इस दिन दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन होता है ।
- विषुव ( Equinox ) : यह पृथ्वी की वह स्थिति है , जव सूर्य की किरणें विषुवत रेखा पर लम्बवत् पड़ती है और सर्वत्र दिन एवं रात बराबर होते हैं ।
- 22 सितम्बर एवं 21 मार्च को सम्पूर्ण पृथ्वी पर दिन एवं रात बराबर होते हैं । इसे क्रमशः शरद विषुव ( Autumnal Equinox ) एवं वसंत विषुव ( Vernal Equinox ) कहते हैं ।
- सूर्यग्रहण ( Solar Eclipse ) : जब कभी दिन के समय सूर्य एवं पृथ्वी के बीच में चन्द्रमा के आ जाने से सूर्य की चमकती सतह चन्द्रमा के कारण दिखाई नहीं पड़ने लगती है तो इस स्थिति को सूर्यग्रहण कहते हैं । जब सूर्य का एक भाग छिप जाता है , तो उसे आशिक सूर्यग्रहण और जब पूरा सूर्य ही कुछ क्षणों के लिए छिप जाता है , तो उसे पूर्ण सूर्यग्रहण कहते हैं । पूर्ण सूर्यग्रहण हमेशा अमावस्या ( New Moon ) को ही होता है । – चन्द्रग्रहण ( Lunar Eclipse ) : जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है , तो सूर्य की पूरी रोशनी चन्द्रमा पर नहीं पड़ती है । इसे चन्द्रग्रहण कहते है । चन्द्रग्रहण हमेशा पूर्णिमा ( Full Moon ) की रात्रि में ही होता है । प्रत्येक पूर्णिमा को चन्द्रग्रहण नहीं होता है क्योंकि चन्द्रमा और पृथ्वी के कक्षा पथ ( orbit path ) में 5 ° का अन्तर होता है जिसके कारण चन्द्रमा कभी पृथ्वी के ऊपर से या नीचे से गुजर जाता है । एक वर्ष में अधिकतम तीन बार पृथ्वी के उपच्छाया क्षेत्र से चन्द्रमा गुजरता है तभी चन्द्रग्रहण लगता है । सूर्यग्रहण के समान चन्द्रग्रहण भी आंशिक अथवा पूर्ण हो सकता है ।
- समय का निर्धारण : एक देशान्तर का अन्तर होने पर समय में 4 मिनट का अन्तर होता है । चूँकि पृथ्वी पश्चिम से पूरब की ओर घूमती है । फलतः पूरब की ओर बढ़ने पर प्रत्येक देशान्तर पर समय 4 मिनट बढ़ता जाता है तथा पश्चिम जाने पर प्रत्येक देशान्तर पर समय चार मिनट घटता जाता है ।
- अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा : 180 ° देशान्तर को अन्तरराष्ट्रीय तिथि रेखा कहते हैं । 1884 ई ० में वाशिंगटन में सम्पन्न इंटरनेशनल मेरीडियन कांफ्रेंस में 180 वें याम्योत्तर को अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा निधार्रित किया गया है । ऐसा इसलिए किया गया ताकि विभिन्न देशों के मध्य यात्रियों को कुछ स्थानों पर 1 दिन का अंतर होने के कारण परेशानी न हो । अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा आर्कटिक सागर , चुकी सागर , रिग स्ट्रेट व प्रशांत महासागर से गुजरती है ।
- ग्रीनविच मेरीडियन से गणना करते हुये इस रेखा ( 180 वाँ याम्योत्तर ) के पूर्व वाले क्षेत्र एक दिन आगे होंगे या दूसरे शब्दों में इस रेखा से पश्चिम वाले क्षेत्रों से 12 घंटे आगे होंगे ।
- जब कोई जलयान पश्चिमी दिशा में यात्रा करते हुए तिथि रेखा को पार करता है तो उसे एक दिन की हानि होती है क्योंकि इस क्षेत्र में समय 12 घंटे पीछे चल रहा होता है ( जैसे सोमवार के बाद रविवार आना ) । परंतु यदि जलयान पूर्व की यात्रा करते हुए तिथि रेखा को पार करता है तो एक दिन का लाभ होता है , जैसे यदि वह सोमवार को यात्रा प्रारंभ करता है तो तिथि रेखा पार करने पर नये क्षेत्र में बुधवार का दिन उसे प्राप्त होगा ।
नोट : बेरिंग जलसंधि अन्तर्राष्ट्रीय तिथि रेखा के समानान्तर स्थित है ।
- समय जोन व मानक समय : विश्व को 24 समय जोनों में विभाजित किया गया है । इन समय जोनों को ग्रीनविच मीन टाइम व मानक समय में एक घंटे के अन्तराल के आधार पर विभाजित किया गया है अर्थात प्रत्येक जोन 15 ° के बराबर होता है ।
- ग्रीनविच याम्योत्तर 0 ° देशान्तर पर है जो कि ग्रीनलैंड व नार्वोनियन सागर व ब्रिटेन , स्पेन , अल्जीरिया , फ्रांस , माले , बुर्कीनाफासो , घाना व दक्षिण अटलांटिक समुद्र से गुजरता है ।
- प्रत्येक देश का मानक समय ग्रीनविच मीन टाइम से आधा घंटे के गुणक के अन्तर पर निर्धारित किया जाता है । मानक समय स्वेच्छा से चयनित याम्योत्तर का स्थानीय समय होता है जो एक विशिष्ट क्षेत्र या देश के लिए मानक समय निर्धारित करता है ।
- भारत में 82.5 डिग्री पूर्वी देशान्तर जो इलाहाबाद के निकट मिर्जापुर से गुजरती है , के समय को मानक समय माना गया है । यह समय ग्रीनविच मीन टाइम से 5.5 घंटा आगे है । अतः जब ग्रीनविच में दोपहर के 12 बजे हो तो उस समय भारत में शाम के 5.30 बजेंगे ।
- विषुवत रेखा ( Equator ) : पृथ्वी की मध्य सतह से होकर जाने वाली वह अक्षांश रेखा है जो उत्तरी एवं दक्षिणी ध्रुव से बराबर दूरी पर होती है । यह शून्य अंश की अक्षांश रेखा है । विषुवत् रेखा के उत्तरी भाग को उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी भाग को दक्षिणी गोलार्द्ध कहते हैं ।
- कटिबन्ध ( Zone ) : प्रत्येक गोलार्द्ध को ताप के आधार पर कई भागों में बाँटा गया है । इन भागों को कटिबन्ध कहते है । ये निम्न हैं
- उष्ण कटिबन्ध ( Tropical Zone ) : विषुवत् रेखा से 30 ° उत्तर एवं 30 ° दक्षिण का भाग । यहाँ वर्ष में दो बार सूर्य शीर्ष पर चमकता है । इस भाग का मौसम सदैव गर्म रहता है ।
- उपोष्ण कटिबन्ध ( Sub Tropical Zone ) : 30 से 45 ° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों के बीच स्थित क्षेत्र जहाँ कुछ महीने ताप अधिक और कुछ महीने ताप कम रहता है ।
- शीतोष्ण कटिबन्ध ( Temperate Zone ) : 45 ° से 66 ° उत्तरी और दक्षिणी अक्षांशों के बीच का क्षेत्र । यहाँ सूर्य सिर के ऊपर कभी नहीं चमकता है , बल्कि उसकी किरणें तिरछी होती हैं । अतः यहाँ ताप हमेशा कम रहता है ।
- ध्रुवीय कटिबन्ध ( Polar Zone ) : 66 ° से 90 ° के मध्य स्थित क्षेत्र जहाँ ताप अत्यन्त ही कम रहता है , जिसके फलस्वरूप वहाँ हमेशा बर्फ जमी रहती है ।
Notes in Hindi-Geography-पृथ्वी और उसका सौर्थिक संबंध
4. पृथ्वी की आन्तरिक संरचना
- पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के सम्बन्ध में वैज्ञानिकों में मतभेद है । भू – गर्भ में पाई जाने वाली परतों की मोटाई , घनत्व , तापमान , भार एवं वहाँ पाए जाने वाले पदार्थ की प्रकृति पर अभी पूर्ण सहमति नहीं हो पायी है । फिर भी तापमान , दबाब , घनत्व , उल्काओं एवं भूकम्पीय तरंगों पर आधारित प्रमाणों को एकत्रित करके पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के सम्बन्ध में जानकारी प्राप्त करने के प्रयास किए गए है ।
- पृथ्वी के अन्दर के हिस्से को तीन भागों में बाँटा गया है -1 . भू – पर्पटी ( Crust ) , 2. आवरण ( Mantle ) एवं 3. केन्द्रीय भाग ( Core ) |
भू – पर्पटी ( Crust ) :
- पृथ्वी के ऊपरी भाग को भू पर्पटी कहते हैं । यह अन्दर की तरफ 34 किमी तक का क्षेत्र है । यह मुख्यतः बेसाल्ट चट्टानों से बना है । इसके दो भाग हैं ( 1 ) सियाल ( SIAL ) और ( 2 ) सीमा ( SIMA ) | सियाल क्षेत्र में सिलिकन एवं एलुमिना एवं सीमा क्षेत्र में सिलिकन एवं मैग्नेशियम की बहुलता होती है । क्रस्ट भाग का औसत घनत्व 27 ग्राम / सेमी है । यह पृथ्वी के कुल आयतन का 0.5 % भाग घेरे हुए है । →
- भूपटल की रचना – सामग्री : सबसे अधिक ऑक्सीजन ( 46-80 % ) , दूसरे स्थान पर सिलिकन ( 27-728 ) और तीसरे स्थान पर एल्युमीनियम ( 8-139 ) है ।
मेंटल ( Mantle ) :
- 2900 किमी मोटा यह क्षेत्र मुख्यतः वैसाल्ट पत्थरों के समूह की चट्टानों से बना है । Mantle के इस हिस्से में मैग्मा चैम्बर पाए जाते हैं । इसका औसत घनत्व 35 ग्राम / सेमी ० से 5-5 ग्राम / सेमी है । यह पृथ्वी के कुल आयतन का 83 % भाग घेरे हुए है ।
- कोनराड असंबद्धता : ऊपरी कस्ट एवं निचले कस्ट के बीच के सीमा क्षेत्र को कोनराड असंबद्धता कहते हैं ।
- मोहसिबिक – डिसकन्टीन्यूटी ( Mohovicic Discontinuity ) : कर्ट एवं मेंटल के बीच के सीमा क्षेत्र को Mohovicic discontinuity कहते हैं ।
- रेपेटी असंबद्धता : ऊपरी मेटल एवं निचले के बीच के सीमा क्षेत्र को रेपेटी असंबद्धता कहते हैं ।
- गुटेनबर्ग – विशार्ट – असंबद्धता : निचले मैटल तथा ऊपरी क्रोड के सीमा क्षेत्र को गुटेनबर्ग विशार्ट असंबद्धता कहते हैं ।
- लेहमेन – संबद्धता : बाह्य क्रोड तथा आन्तरिक क्रोड के सीमा क्षेत्र को लैहमेन असंबद्धता कहते हैं ।
केन्द्रीय भाग ( Core ) :
- पृथ्वी के केन्द्र के क्षेत्र को केन्द्रीय भाग ( cons ) कहते हैं । यह क्षेत्र निकेल व फेरस का बना है । इसका औसत घनत्व 13 ग्राम / सेमी है । पृथ्वी का केन्द्रीय भाग संभवतः द्रव अथवा प्लास्टिक अवस्था में है । यह पृथ्वी का कुल आयतन का 16 % भाग घेरे हुए है ।
- पृथ्वी का औसत घनत्व 5-5 ग्राम / सेमी ० एवं औसत त्रिज्या लगभग 6370 किमी है ।
- पृथ्वी के नीचे जाने पर प्रति 32 मी ० की गहराई पर तापमान 1 ° C बढ़ता जाता है ।
- पृथ्वी के स्थलीय क्षेत्र पर सबसे नीचा क्षेत्र जार्डन में मृत सागर के आस – पास का क्षेत्र है । यह क्षेत्र समुद्रतल से औसतन 400 मी ० नीचा है ।
- सबसे पहले पाइथोगोरस ने बताया कि पृथ्वी गोल है और यह आकाश में स्वतंत्र रूप से लटकी हुई है ।
- सर आइजक न्यूटन ने सावित किया कि पृथ्वी नारंगी के समान है ।
- जेम्स जीन ने इसे नारंगी के बजाय नाशपाती के समान बतलाया ।