राजस्थान सचिवालय
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मंत्रियों के दफ्तरों में स्टाफ के तैनाती की लड़ाई अब सरकार में शीर्ष स्तर तक पहुंच गई है। मनाही के बाद भी कई मंत्रियों ने अपने ऑफिस का काम प्राइवेट और रिटायर लोगों को संभला दिया। सचिवालय कर्मचारी संघ अब इसके विरोध में खुलकर सामने आ गया है। यह विरोध सिर्फ मंत्रियों के ऑफिस तक ही नहीं है बल्कि बड़ी तादाद में सचिवालय में डेपुटेशन और संविदा पर काम कर रहे लोगों का भी है। जानकारी के मुताबिक इस समय सचिवालय के विभिन्न विभागों में करीब 500 से ज्यादा कार्मिक डेपुटेशन और संविदा पर काम कर रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा तादाद वित्त और गृह विभाग में काम करने वालों की है।
मुख्य सचिव से की शिकायत
राजस्थान सचिवालय कर्मचारी संघ ने मुख्य सचिव सुधांशु पंत से शिकायत की है कि एक तरफ सरकार अपने ऑफिसों से रिटायर कर्मचारियों को बाहर कर रही है, वहीं मंत्रियों के दफ्तरों के जरिये ये कर्मचारी बैक डोर एंट्री ले रहे हैं। संघ की तरफ से मुख्य सचिव को इस संबंध में ज्ञापन भी दिया गया है। इसमें कहा गया है कि मंत्रियों के कार्यालयों में सचिवालय सेवा के निजी सचिव, अनुभाग अधिकारी, निजी सहायक व मंत्रालयिक कर्मचारियों के पद स्वीकृत हैं। इन पर सचिवालय सेवा के कर्मचारियों को ही लगाए जाने का प्रावधान है लेकिन कई मंत्रियों ने सचिवालय सेवा के कार्मिकों के स्वीकृत पदों पर प्राइवेट और रिटायर लोगों को पे माइनस पेंशन व फिक्स पे पर लगाए जाने के लिए अनुशंसाएं सरकार को भिजवाई हैं।
इतना ही नहीं सचिवालय के विभागों, अनुभागों में भी सेवानिवृत्त कर्मचारी संविदा पर लगे हैं, जिन्हें महत्वपूर्ण कार्य आवंटित किए गए हैं। इससे सरकार की गोपनीयता पर भी प्रश्नचिन्ह लगता है। इसके अलावा ये सचिवालय कर्मचारियों के रिक्त पदों को कम कर रहे हैं एवं सरकार पर इसका वित्तीय भार भी आ रहा है। सचिवालय कर्मचारी संघ ने सीएस को ज्ञापन देकर प्राइवेट, रिटायर कर्मचारियों को सचिवालय से हटाने की मांग की है।
गृह एवं वित्त में सबसे ज्यादा डेपुटेशन
सचिवालय में संविदा और डेपुटेशन पर करीब 450 कार्मिक काम कर रहे हैं। इनके अलावा करीब 50 से ज्यादा कार्मिक संविदा पर काम कर रहे हैं। डेपुटेशन और संविदा पर काम करने वाले इन कर्मचारियों में सबसे ज्यादा वित्त, गृह, खान, श्रम एवं रोजगार विभाग में लगाए गए हैं।
यही नहीं सचिवालय में बाहर के महकमों से भी गोपनीय एवं महत्वपूर्ण विभागों के काम देखने के लिए डेपुटेशन पर लोग लगा रखे हैं। इसमें सबसे ज्यादा संख्या वित्त व गृह विभाग में है। गृह विभाग में पुलिस कर्मिकों को लगा रखा है, वहीं वित्त विभाग में ऐसे अकाउंटेंट डेपुटेशन पर लगाए गए हैं, जिनकी नियुक्ति सरकारी कंपनियों में है।
सचिवालय कर्मचारी संघ के अध्यक्ष सीताराम जाट का कहना है कि कुछ मामले तो ऐसे हैं, जहां मंत्रियों के लगाए गए प्राइवेट कर्मचारी दूसरे अफसर के साइन करके काम कर रहे हैं। यह बहुत ही गंभीर मामला है और सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए।
राज. सचिवालय सेवा अधिकारी संघ के डॉ. के. के. स्वामी बताते हैं कि सचिवालय में करीब 90 रिटायर लोगों को लगा रखा है। इनकी निष्ठा सरकार के प्रति नहीं बल्कि उन अफसरों के प्रति होती है, जिन्होंने इन्हें लगाया है। इनका कोई आउटपुट भी नहीं है। सचिवालय में अफसरों के बैठने की व्यवस्था नहीं लेकिन रिटायर लोगों को चैंबर और स्टाफ देना पड़ता है।
चिंता है क्योंकि :
प्राइवेट, सेवानिवृत्त, रिवर्स डेपुटेशन कर्मचारी कैसे सरकारी कामकाज को प्रभावित करते हैं, जब इस बात की जांच की गई तो चौंकाने वाले खुलासे हुए :
1.सामान्यत: सरकारी सेवा में कार्यरत कार्मिक तत्संबंधी नियमों एवं प्रावधानों को ध्यान में रखकर ही फाइलों को आगे बढ़ाता है क्योंकि उन्हें डर रहता है कि नियम विरुद्ध काम करने पर भविष्य में उन पर सेवा नियमों के तहत कार्रवाई हो सकती है। इससे गलत काम करने की प्रवृत्ति पर काफी हद तक रोक लगती है।
लेकिन सेवानिवृत्त एवं प्राइवेट व्यक्तियों से सरकार में नियम विरुद्ध कार्य या किसी व्यक्ति अथवा संस्था को फायदा पहुंचाने वाला कार्य आसानी से करवाया जा सकता है क्योंकि एक तो सेवा नियमों के तहत इन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। दूसरा राजकोष को नुकसान की एवज में इनसे किसी तरह की वसूली नहीं की जा सकती। साथ ही साथ इनकी पदोन्नति रोककर इन्हें दंडित भी नहीं किया जा सकता और इनकी निष्ठा राज्य के प्रति ना होकर इन्हें वहां नियुक्त करने वाले के प्रति होती है।
3.इसके अलावा अन्य बोर्ड, कॉरपोरेशन्स, कंपनीज के लोगों को सरकार के प्रमुख विभागों में डेपुटेशन पर लगाया जाता है। यह कॉन्फलिक्ट ऑफ इंटरेस्ट की श्रेणी में आता है। ऐसे व्यक्ति सरकार की जगह उस बोर्ड, कॉरपोरेशन या कंपनी का पक्ष लेते हैं, जहां इनकी नियुक्ति होती है। सरकार के ज्यादातर महकमों में जो ट्रेप की कार्रवाई होती है, उनमें ऐसे ही लोग सबसे ज्यादा पकड़ में आते हैं।
4. इस तरह की नियुक्तियों से राज्य के खजाने पर अनावश्यक भार भी आता है। इसके साथ ही जिन पदों के खाली रहने पर नई वेकेंसी निकाली जानी चाहिए उन्हें संविदा या डेपुटेशन के माध्यम से अनावश्यक रूप से भरा जाना बेरोजगारों के साथ धोखा है।
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