Science and Technology - Satellites and Space Missions of India

Science and Technology - Satellites and Space Missions of India

Science and Technology - भारत के विभिन्न प्रकार के उपग्रह (Different Types of Satellites of India)

  1. INSAT (इंडियन नेशनल सेटेलाईट) / GSAT (जियोस्टेशनरी सेटेलाईट)
  • भारत का प्रथम दूरसंचार उपग्रह 1983 में INSAT-1B था। 
  • इनसैट श्रृंखला के उपग्रह दूरसंचार से संबंधित ।
  • दूरसंचार/Telecommunication से संबंधित उपग्रहों में मुख्य पेलोड के रूप में अलग-2 आवृत्ति के ट्रांसपोण्डर्स का प्रयोग करते हैं।
  • GSAT उपग्रह मुख्य रूप से मौसम की जानकारी प्रदान करते हैं।
  • GSAT-9 को दक्षिण एशियाई उपग्रह भी कहते हैं। इसके द्वारा मौसम – संबंधी आंकड़े / डेटा अफगानिस्तान, मालदीव, श्रीलंका, नेपाल, भूटान एवं बांग्लादेश को भी प्राप्त हो रहे हैं।
  • GSAT – 30- स्थानीय समय 9:00PM (16 जनवरी 2020), फ्रेंच गयाना के कौरू- अंतरिक्ष केंद्र से छोड़ा गया जो कि भारत सबसे बड़ा GSAT उपग्रह है।
  1. IRS / इंडियन रिमोट सेंसिंग सेटेलाईट्स
  • ये रिमोट सेंसिंग (सुदूर संवेदन) से संबंधित उपग्रह पारिस्थितिक परिवर्तन, प्रदूषण, ग्रीन हाउस प्रभाव, भू-गर्भीय संसाधनों की जानकारी देने आदि का कार्य करते हैं।
  •  
  • Ex.- रीसोर्ससैट, ओशनसैट, कार्टासेट [निष्क्रिय रिमोट सेंसिंग ] रीसेट शृंखला  के उपग्रह [ सक्रिय रिमोट सेंसिंग ]
  • 2019 दिसंबर रीसैट-2BR1 (PSLV की 50वीं सफल उड़ान) 
  1. नेविगेशन उपग्रह / नौवहन उपग्रह :
  • नेविगेशन प्रणाली में किसी वस्तु की स्थिति (देशांतर, अक्षांश, ऊँचाई तथा समय) को देख सकते हैं।
  • ये नेविगेशन प्रणालियाँ 2 प्रकार की : 
    • रीजनल (Regional) नेविगेशन सिस्टम
    • ग्लोबल (global) नेविगेशन सिस्टम

विभिन्न देशों का नेविगेशन सिस्टम

  • USA →  GPS
  • चीन →  बाईडेयू (Baideu) कंपास
  • रूस → GLONASS
  • यूरोपियन यूनियन → गैलिलिओ
  • जापान →  QZSS (क्वासी जेनिथ सेटेलाईट सिस्टम)

भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह तंत्र (IRNSS)

  • 3 जियोस्टेशनरी सेटेलाईट
  • 4 जियोसिनकोनस सेटेलाईट 
  • ये भारत की भूमि से 1500 Km. के क्षेत्र को कवर करते हुए क्षेत्रीय नौवहन (Regional ‘Navigation) उपलब्ध कराता है|
  • वर्तमान नाम “Navic” / नाविक (Navigation with Indian Constellation)

आर्यभट्ट  

  • 19 अप्रैल 1975  भारत का प्रथम उपग्रह 
  • 1975-1981 (सक्रिय)

रूस के द्वारा KOSMOS-3 नामक यान / Vehicle द्वारा भेजा गया।

Science and Technology - भारत के अंतरिक्ष अन्वेषण मिशन (Space Exploration Missions of India)

चंद्रयान-1

  • अक्टूबर 2008 में PSLV के XL रूपांतरण PSLV-C 11  के द्वारा भेजा गया।
  • चन्द्रयान-1 में उपस्थित ” मून इम्पेक्ट प्रोब ” ने सर्वप्रथम चंद्रमा पर जल की उपस्थिति के आंकड़े / डेटा भेजे।
  • इस चंद्रयान -1 ने चंद्रमा हीलियम-3 की उपस्थिति के बारे में भी बताया। जो कि भविष्य में ईंधन का विश्वसनीय स्रोत हो सकता है।
  • चंद्रयान – 1 को 2 वर्ष कार्य करना था लेकिन 312 दिन बाद इसरो का इससे संपर्क टूट गया, हालांकि ये अपने कार्य पूरे कर चुका था।

मंगलयान / MOM/ मार्स ऑर्बिटर मिशन

  • PSLV के XL रूपांतरण PSLV- C – 25 के द्वारा नवंबर 2013 में भेजा गया ऑर्बिटर मिशन जो कि सितंबर 2014 को मंगल की कक्षा में पहुँचा |
  • मंगलयान के पेलोड 

→ मार्स कलर कैमरा 

→ मीथेन सेंसर

→थर्मल इंफ्रारेड इमेजिंग सेंसर

→लेमैन स्पेक्ट्रोमीटर

मार्स एक्सोस्फीयर न्यूट्रल कंपोजिशन एनालायज़र (MENCA)

एस्ट्रोसैट 

  • भारत का प्रथम अंतरिक्ष टेलीस्कोप – Space Observatory 
  • PSLV- C – 30 के द्वारा 2015 में LEO (low earth orbit) में स्थापित किया गया।
  • एस्ट्रोसैट के पेलोड

→LAXPC : लार्ज एरिया X-Ray प्रपोशनल काउन्टर

→UVIT: अल्ट्रा वॉयलेट इमेजिंग टेलीस्कोप |

→CZTI : फैडमियम जिंक टेल्यूराइड इमेजर

→SXT : Soft X-ray Telescope

 चंद्रयान-2

  • GSLV- मार्क III की सहायता से 22 जुलाई 2019 को भेजा गया जो 20 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा में पहुंचा |
  • इस यान में 3 प्रमुख संरचनाएँ ऑर्बिटर, विक्रम लेंडर तथा प्रज्ञान रोवर थे|
  • ऑर्बिटर सफलतापूर्वक चंद्रमा की कक्ष में पहुंचा लेकिन विक्रम लैंडर जो कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर “सॉफ़्ट लैंडिंग” करने वाला प्रथम लैंडर हो सकता था परंतु संपर्क टूट जाने के ये सॉफ़्ट लैंडिंग नहीं कर पाया।  लेंडर (विक्रम) एवं रोवर (प्रजान) नष्ट हो गए।

चंद्रयान-3

  • भारत के तीसरे चंद्र मिशन, चंद्रयान – 3 ने 23 अगस्त, 2023 को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करके इतिहास रच दिया। 
  • चंद्रयान-3 मिशन 14 जुलाई, 2023 को श्रीहरिकोटा, एपी में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से रवाना हुआ।
  • 5 अगस्त को मिशन ने चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश किया।
  • इसके साथ, भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला और पृथ्वी के एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह पर सफलतापूर्वक उतरने वाला चौथा (रूस, अमेरिका और चीन के बाद) देश बन गया।
  • चंद्रयान 3 मिशन के उद्देश्य
    • चंद्रमा की सतह पर सुरक्षित और सॉफ्ट लैंडिंग का प्रदर्शन करना
    • चंद्रमा पर रोवर के घूमने का प्रदर्शन करना
    • यथास्थान वैज्ञानिक प्रयोगों का संचालन करना

चंद्र दक्षिणी ध्रुव का महत्व

  • पिछले चंद्र मिशनों ने चंद्रमा के अनुकूल इलाके के कारण इसके भूमध्यरेखीय क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित किया है। भूमध्यरेखीय क्षेत्र की तुलना में दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र अधिक चुनौतीपूर्ण है। पर्याप्त सूर्य के प्रकाश की कमी और अत्यधिक ठंड की स्थिति (-230 डिग्री सेल्सियस तक) के कारण उपकरण संचालन और स्थिरता में कठिनाई होती है। वैज्ञानिकों के अनुसार ध्रुवीय क्षेत्रों में पानी हो सकता है। साथ ही, विशेषज्ञों का मानना ​​है कि इन क्षेत्रों के गड्ढों में प्रारंभिक ग्रह प्रणाली के जीवाश्म रिकॉर्ड मौजूद हैं।

इसरो के प्रमुख आगामी अंतरिक्ष अन्वेषण मिशन

  1. गगनयान  – भारत का प्रथम अंतरिक्ष मिशन जिसमें मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।

2. आदित्य L-1 – सूर्य की बाहरी सतह (कोरोना) का अध्ययन करने हेतु भेजा जाने वाला इसरो का प्रथम मिशन |

अन्य महत्वपूर्ण बिन्दु

  1. SCRAMJET इंजिन : सुपरसोनिक कंम्बशन रॅमजेट इंजिन

ये प्रकार का विकसित क्रायोजेनिक इंजिन है, जो वायुमंडलीय O2 का प्रयोग ऑक्सीकारक के रूप में करता है तथा सुपरसोनिक गति होने पर भी ये क्रियाशील रहता है।

2. गगन [GAGAN] [GPS एडेड जियो ऑगमेण्टेड नेविगेशन GPS Added geo augmented Navigation → 

एयरपोर्ट ऑथॉरिटी ऑफ़ इंडिया [AAI] व इसरो ने मिलकर ये सॉफ़्टवेयर तैयार किया जिसके द्वारा ग्राउण्ड स्टेशन की सहायता के बिना भी, आपातकालीन परिस्थितियों में विमान को लैण्ड करने में सहायक।

3. भुवन

3’D मैपिंग का सॉफ़्टवेयर, जिसके विकास में इसरो ने सहायता की। ये सॉफ़्टवेयर 300 से अधिक शहरों की 3’D  मैपिंग दर्शाता तथा गंगा की सफाई जैसे अभियानों में भी ये सहायक रहा है।

4. लंग्राज बिंदु

सूर्य एवं पृथ्वी ( या किसी अन्य पिण्ड / वस्तुओं) के सूर्य पृथ्वी मध्य वह बिंदु जिस पर कोई अन्य वस्तु (जैसे आदित्य-L-1) गति  करते हुए पृथ्वी के सापेक्ष नियत स्थिति पर बना रहता है |

5. केसलर सिंड्रोम

नासा के वैज्ञानिक डोनाल्ड केसलर के अनुसार पृथ्वी के चारों ओर विभिन्न कक्षाओं में गति करते हुए सेटेलाईट या उनके विभिन्न भाग आपस में टकराकर नष्ट हो जाएंगे, इस टक्कर से उत्पन्न कचरा पुनः नए उपग्रहों से टकरा कर अंतरिक्ष में कचरे / Debris को लगाता बढ़ाता रहेगा, इसे ही केसलर सिंड्रोम कहते है।

6. गोल्डीलॉक्स जोन (Goldilocks Zone) 

किसी तारे / Star के चारों ओर का वह क्षेत्र जिसमें कोई अन्य ग्रह का तापमान पृथ्वी के बराबर रहे, ऐसे ग्रह पर जीवन संभव हो सकता है, यह क्षेत्र ही “गोल्डीलॉक्स ज़ोन” कहलाता है।